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सृष्टिखण्ड ] रुद्राक्षकी उत्पत्ति और महिमा तथा आँवलेके फल और तुलसीदलका माहात्म्य •
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प्रतिष्ठित हैं। जैसे भगवान् श्रीविष्णुको लक्ष्मी और मैं दोनों प्रिय हैं, उसी प्रकार यह तुलसीदेवी भी परम प्रिय है। हम तीनके सिवा कोई चौथा ऐसा नहीं जान पड़ता, जो भगवान्को इतना प्रिय हो। तुलसीदलके बिना दूसरे दूसरे फूलों, पत्तों तथा चन्दन आदिके लेपोंसे भगवान् श्रीविष्णुको उतना सन्तोष नहीं होता। जिसने तुलसीदलके द्वारा पूर्ण श्रद्धाके साथ प्रतिदिन भगवान् श्रीविष्णुका पूजन किया है, उसने दान, होम, यज्ञ और व्रत आदि सब पूर्ण कर लिये। तुलसीदलसे भगवान्की पूजा कर लेनेपर कान्ति, सुख, भोगसामग्री, यश, लक्ष्मी, श्रेष्ठ कुल, शील, पत्नी, पुत्र, कन्या, धन, राज्य, आरोग्य, ज्ञान, विज्ञान, वेद, वेदाङ्ग, शास्त्र, पुराण, तन्त्र और संहिता – सब कुछ मैं करतलगत समझता हूँ। जैसे पुण्यसलिला गङ्गा मुक्ति प्रदान करनेवाली हैं, उसी प्रकार यह तुलसी भी कल्याण करनेवाली है। स्कन्द ! यदि मञ्जरीयुक्त तुलसीपत्रोंके द्वारा भगवान् श्रीविष्णुकी पूजा की जाय तो उसके पुण्यफलका वर्णन करना असम्भव है। जहाँ तुलसीका वन है, वहीं भगवान् श्रीकृष्णकी समीपता है। तथा वहीं ब्रह्मा और लक्ष्मीजी भी सम्पूर्ण देवताओंके साथ विराजमान हैं। इसलिये अपने निकटवर्ती स्थानमें तुलसीदेवीको रोपकर उनकी पूजा करनी चाहिये । तुलसीके निकट जो स्तोत्र-मन्त्र आदिका जप किया जाता है, वह सब अनन्तगुना फल देनेवाला होता है।
प्रेत, पिशाच, कूष्माण्ड, ब्रह्मराक्षस, भूत और दैत्य आदि सब तुलसीके वृक्षसे दूर भागते हैं। ब्रह्महत्या आदि पाप तथा पाप और खोटे विचारसे उत्पन्न होनेवाले रोग – ये सब तुलसीवृक्षके समीप नष्ट हो जाते हैं। जिसने श्रीभगवान्की पूजाके लिये पृथ्वीपर तुलसीका बगीचा लगा रखा है, उसने उत्तम दक्षिणाओंसे युक्त सौ यज्ञोंका विधिवत् अनुष्ठान पूर्ण कर लिया है। जो
श्रीभगवान्की प्रतिमाओं तथा शालग्राम शिलाओंपर चढ़े हुए तुलसीदलको प्रसादके रूपमें ग्रहण करता है, वह श्रीविष्णुके सायुज्यको प्राप्त होता है। जो श्रीहरिकी पूजा करके उन्हें निवेदन किये हुए तुलसीदलको अपने मस्तकपर धारण करता है, वह पापसे शुद्ध होकर स्वर्गलोकको प्राप्त होता है। कलियुगमें तुलसीका पूजन, कीर्तन, ध्यान, रोपण और धारण करनेसे वह पापको जलाती और स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करती है। जो तुलसीके पूजन आदिका दूसरोंको उपदेश देता और स्वयं भी आचरण करता है, वह भगवान् श्रीलक्ष्मीपतिके परम धामको प्राप्त होता है।* जो वस्तु भगवान् श्रीविष्णुको प्रिय जान पड़ती है, वह मुझे भी अत्यन्त प्रिय है। श्राद्ध और यज्ञ आदि कार्योंमें तुलसीका एक पत्ता भी महान् पुण्य प्रदान करनेवाला है। जिसने तुलसीकी सेवा की है, उसने गुरु, ब्राह्मण, देवता और तीर्थ — सबका भलीभाँति सेवन कर लिया। इसलिये षडानन ! तुम तुलसीका सेवन करो। जो शिखामें तुलसी स्थापित करके प्राणोंका परित्याग करता है, वह पापराशिसे मुक्त हो जाता है। राजसूय आदि यज्ञ, भाँति-भाँतिके व्रत तथा संयमके द्वारा धीर पुरुष जिस गतिको प्राप्त करता है, वही उसे तुलसीकी सेवासे मिल जाती है। तुलसीके एक पत्रसे श्रीहरिकी पूजा करके मनुष्य वैष्णवत्वको प्राप्त होता है। उसके लिये अन्यान्य शास्त्रोंके विस्तारकी क्या आवश्यकता है। जिसने तुलसीकी शाखा तथा कोमल पत्तियोंसे भगवान् श्रीविष्णुकी पूजा की है, वह कभी माताका दूध नहीं पीता उसका पुनर्जन्म नहीं होता। कोमल तुलसीदलोंके द्वारा प्रतिदिन श्रीहरिकी पूजा करके मनुष्य अपनी सैकड़ों और हजारों पीढ़ियोंको पवित्र कर सकता है। तात! ये मैंने तुमसे तुलसीके प्रधान प्रधान गुण बतलाये हैं। सम्पूर्ण गुणोंका वर्णन तो बहुत अधिक समय लगानेपर भी नहीं हो सकता। यह उपाख्यान
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* पूजने कीर्तने ध्याने रोपणे धारणे कलौ तुलसी दहते उपदेशं ददेदस्याः स्वयमाचरते पुनः । स याति
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पापं स्वर्ग मोक्षं ददाति च ॥ स्थानं माधवस्य निकेतनम् ॥
(५८ । १३१-१३२)