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सृष्टिखण्ड ]
. रुद्राक्षकी उत्पत्ति और महिमा तथा आँवलेके फल और तुलसीदलका माहात्म्य .
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चाण्डाल तो बड़ा पापी था; फिर क्या कारण है कि रक्षा नहीं करते, जो अपनी प्रतिज्ञाका त्याग करते, हमलोग तथा ये यमराजके सेवक उसकी ओर देख भी असत्य बोलते और व्रत भङ्ग करते हैं तथा जो कमलके न सके ?' 'यह मेरा है, यह मेरा है' कहते हुए हमलोग पत्तेपर भोजन करते हैं, वे सब इस पृथ्वीपर कर्मानुसार झगड़ा कर रहे हैं, किन्तु उसे ले जानेकी शक्ति नहीं प्रेत होते हैं। जो अपने चाचा और मामा आदिकी रखते। क्यों और किसके प्रभावसे वह सूर्यकी भाँति सदाचारिणी कन्या तथा साध्वी स्त्रीको बेच देते हैं, वे दुष्प्रेक्ष्य हो रहा है-उसकी ओर दृष्टिपात करना भी भूतलपर प्रेत होते हैं। कठिन जान पड़ता है।
प्रेतोंने पूछा-ब्राह्मणो ! किस प्रकार और किस ____ मुनियोंने कहा-प्रेतगण ! इस चाण्डालने कर्मके आचरणसे मनुष्य प्रेत नहीं होते?
आँवलेके पके हुए फल खाये थे। उसकी डाल टूट ब्राह्मणोंने कहा-जिस बुद्धिमान् पुरुषने तीर्थोके जानेसे उसके सम्पर्कमें ही इसकी मृत्यु हुई है। जलमें स्रान तथा शिवको नमस्कार किया है, वह मनुष्य मृत्युकालमें भी इसके आस-पास बहुत-से फल बिखरे प्रेत नहीं होता। जो एकादशी अथवा द्वादशीको उपवास पड़े थे। इन्हीं सब कारणोंसे तुमलोगोंका इसकी ओर करके विशेषतः भगवान् श्रीविष्णुका पूजन करते हैं तथा देखना कठिन हो रहा है। इस पापीका आँवलेसे सम्पर्क जो वेदोंके अक्षर, सूक्त, स्तोत्र और मन्त्र आदिके द्वारा रविवारको या और किसी निषिद्ध वेलामें नहीं हुआ है; देवताओंके पूजनमें संलग्न रहते हैं, उन्हें भी प्रेत नहीं इसलिये यह दिव्य लोकको प्राप्त होगा।
होना पड़ता। पुराणोंके धर्मयुक्त दिव्य वचन सुनने, पढ़ने प्रेत बोले-मुनीश्वरो ! आपलोगोंका ज्ञान उत्तम और पढ़ानेसे तथा नाना प्रकारके व्रतोंका अनुष्ठान करने है, इसलिये हम आपसे एक प्रश्न पूछते हैं। जबतक यहाँ और रुद्राक्ष धारण करनेसे जो पवित्र हो चुके हैं एवं जो श्रीविष्णुलोकसे विमान नहीं आता, तबतक आपलोग रुद्राक्षकी मालापर जप करते हैं, वे प्रेतयोनिको नहीं प्राप्त हमारे प्रश्नका उत्तर दे दें। जहाँ वेदों और नाना प्रकारके होते। जो आँवलेके फलके रससे स्नान करके प्रतिदिन मन्त्रोंका गम्भीर घोष होता है, जहाँ पुराणों और आँवला खाया करते हैं तथा आँवलेके द्वारा भगवान् स्मृतियोंका स्वाध्याय किया जाता है, वहाँ हम एक श्रीविष्णुका पूजन भी करते हैं, वे कभी पिशाचयोनिमें क्षणके लिये भी नहीं ठहर सकते। यज्ञ, होम, जप तथा नहीं जाते। देवपूजा आदि शुभ कार्योंके सामने हमारा ठहरना प्रेत बोले-महर्षियो ! संतोंके दर्शनसे पुण्य असम्भव है; इसलिये हमें यह बताइये कि कौन-सा कर्म होता है-इस बातको पौराणिक विद्वान् जानते हैं। हमें करके मनुष्य प्रेतयोनियोंको प्राप्त होते हैं। हमें यह भी आपका दर्शन हुआ है; इसलिये आपलोग हमारा सुननेकी भी इच्छा है कि उनका शरीर विकृत क्योंकर हो कल्याण करें। धीर महात्माओ ! जिस उपायसे हम सब जाता है।
लोगोंको प्रेतयोनिसे छुटकारा मिले, उसका उपदेश ब्रह्मर्षियोंने कहा-जो झूठी गवाही देते तथा कीजिये । हम आपलोगोंकी शरणमें आये हैं। वध और बन्धनमें पड़कर मृत्युको प्राप्त होते हैं, वे नरकमें ब्राह्मण बोले-हमारे वचनसे तुमलोग पड़े हुए जीव ही प्रेत होते हैं। जो ब्राह्मणोंके दोष दूँढ़नेमें आँवलेका भक्षण कर सकते हो। वह तुम्हारे लिये लगे रहते हैं और गुरुजनोंके शुभ कर्मोमें बाधा पहुँचाते कल्याणकारक होगा। उसके प्रभावसे तुम उत्तम लोकमें हैं तथा जो श्रेष्ठ ब्राह्मणको दिये जानेवाले दानमें रुकावट जानेके योग्य बन जाओगे। डाल देते हैं, वे चिरकालतक प्रेतयोनिमें पड़कर नरकसे महादेवजी कहते हैं-इस प्रकार ऋषियोंसे कभी उद्धार नहीं पाते। जो मूर्ख अपने और दूसरेके सुनकर पिशाच आँवलेके वृक्षपर चढ़ गये और उसका बैलोंको कष्ट दे उनसे बोझ ढोनेका काम लेकर उनकी फल ले-लेकर उन्होंने बड़ी मौजके साथ खाया। तब