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सृष्टिखण्ड ]
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श्रीरामका लड्डा
आदि होते हुए गङ्गातटपर भगवान् श्रीवामनकी स्थापना करना
प्रदान की है। यह पुरी ही नहीं, ये स्त्रियाँ, वे पुत्र तथा स्वयं मैं - यह सब कुछ भगवान्की सेवामें अर्पित है। भगवन् ! आपको नमस्कार है; आप इसे स्वीकार करें।'
तदनन्तर राजा विभीषणका मन्त्रिमण्डल और लङ्काके निवासी श्रीरामचन्द्रजीके दर्शनके लिये उत्सुक हो वहाँ आये और विभीषणसे बोले— 'प्रभो! हमें श्रीरामजीका दर्शन करा दीजिये।' विभीषणने महाराज श्रीरामचन्द्रजीसे उनका परिचय कराया और श्रीरामकी आज्ञासे भरतने उन राक्षस पतियोंके द्वारा भेंटमें दिये हुए धन और रत्नराशिको ग्रहण किया। इस प्रकार राक्षसराजके भवनमें श्रीरघुनाथजीने तीन दिनतक निवास किया। चौथे दिन जब श्रीरामचन्द्रजी राजसभामें विराजमान थे, राजमाता कैकसीने विभीषणसे कहा- 'बेटा! मैं भी अपनी बहुओंके साथ चलकर श्रीरामचन्द्रजीका दर्शन करूँगी, तुम उन्हें सूचना दे दो। ये महाभाग श्रीरघुनाथजी चार मूर्तियोंमें प्रकट हुए सनातन भगवान् श्रीविष्णु हैं तथा परम सौभाग्यवती सीता साक्षात् लक्ष्मी हैं। तुम्हारा बड़ा भाई उनके स्वरूपको नहीं पहचान पाया था। तुम्हारे पिताने देवताओंके सामने पहले ही कह दिया था कि भगवान् श्रीविष्णु रघुकुलमें राजा दशरथके पुत्ररूपसे अवतार लेंगे। वे ही दशग्रीव रावणका विनाश करेंगे।'
विभीषण बोले- माँ ! तुम श्रीरघुनाथजीके समीप अवश्य जाओ। मैं पहले जाकर उन्हें सूचना देता हूँ।
यों कहकर विभीषण जहाँ श्रीरामचन्द्रजी थे, वहाँ गये और वहाँ भगवान्का दर्शन करनेके लिये आये हुए सब लोगोंको विदा करके उन्होंने सभाभवनको सर्वथा एकान्त बना दिया। फिर श्रीरामके सम्मुख खड़े होकर कहा - 'महाराज ! मेरा निवेदन सुनिये; रावणको कुम्भकर्णको तथा मुझको जन्म देनेवाली मेरी माता कैकसी आपके चरणोंका दर्शन चाहती है; आप कृपा करके उसे दर्शन दें।' श्रीरामने कहा-'राक्षसराज ! [तुम्हारी माता मेरी भी माता ही हैं, ] मैं माताका दर्शन करनेकी इच्छासे स्वयं ही उनके पास चलूँगा। तुम शीघ्र मेरे आगे-आगे चलो।'
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ऐसा कहकर वे सिंहासनसे उठे और चल पड़े। कैकसीके पास पहुँचकर उन्होंने मस्तकपर अञ्जलि बाँध उसे प्रणाम करते हुए कहा- 'देवि! मैं आपको प्रणाम करता हूँ। [मित्रकी माता होनेके नाते] आप धर्मतः मेरी माता है। जैसे कौसल्या मेरी माता हैं, उसी प्रकार आप भी हैं।'
कैकसी बोली - वत्स! तुम्हारी जय हो, तुम चिरकालतक जीवित रहो। वीर! मेरे पतिने कहा था कि 'भगवान् श्रीविष्णु देवताओंका हित करनेके लिये रघुकुलमें मनुष्य रूपसे अवतार लेंगे। वे रावणका विनाश करके विभीषणको राज्य प्रदान करेंगे। वे दशरथनन्दन श्रीराम वालीका वध और समुद्रपर पुल बाँधने आदिका कार्य भी करेंगे!' इस समय स्वामीके वचनोंका स्मरण करके मैंने तुम्हें पहचान लिया। सीता लक्ष्मी हैं, तुम श्रीविष्णु हो और वानर देवता हैं। अच्छा, बेटा! तुम्हें अमर यश प्राप्त हो।
विभीषणकी पत्नी सरमाने कहा- भगवन् ! यहीं अशोक वाटिकामें आपकी प्रिया श्रीजानकी देवीकी मैंने पूरे एक वर्षतक सेवा की थी, वे मेरी सेवासे यहाँ सुखपूर्वक रही हैं। परंतप मैं प्रतिदिन श्रीसीताके चरणोंका स्मरण करती हूँ। रात-दिन यही सोचती रहती