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• अर्जयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[संक्षिप्त पद्यपुराण
उत्तम ब्राह्मण और गायत्री-मन्त्रकी महिमा भीष्मजीने पूछा-विप्रवर! मनुष्यको भी होता । जिस घरके आँगन ब्राह्मणोंकी चरणधूलि पड़नेसे देवत्व, सुख, राज्य, धन, यश, विजय, भोग, आरोग्य, पवित्र एवं शुद्ध होते रहते हैं, वे पुण्यक्षेत्रके समान हैं। आयु, विद्या, लक्ष्मी, पुत्र, बन्धुवर्ग एवं सब प्रकारके उन्हें यज्ञ-कर्मके लिये श्रेष्ठ माना गया है। भीष्म ! मङ्गलकी प्राप्ति कैसे हो सकती है? यह बतानेकी पूर्वकालमें ब्रह्माजीके मुखसे पहले ब्राह्मणका प्रादुर्भाव कृपा कीजिये।
हुआ; फिर उसी मुखसे जगत्की सृष्टि और पालनके पुलस्त्यजीने कहा-राजन् ! इस पृथ्वीपर हेतुभूत वेद प्रकट हुए। अतः विधाताने समस्त लोकोंकी ब्राह्मण सदा ही विद्या आदि गुणोंसे युक्त और श्रीसम्पन्न पूजा ग्रहण करनेके लिये और समस्त यज्ञोंके अनुष्ठानके होता है। तीनों लोकों और प्रत्येक युगमें ब्राह्मण-देवता लिये ब्राह्मणके ही मुखमें वेदोंको समर्पित किया। नित्य पवित्र माने गये हैं। ब्राह्मण देवताओंका भी देवता पितृयज्ञ (श्राद्ध-तर्पण), विवाह, अग्निहोत्र, शान्तिकर्म है। संसारमें उसके समान दूसरा कोई नहीं है। वह तथा सब प्रकारके माङ्गलिक कार्योंमें ब्राह्मण सदा उत्तम साक्षात् धर्मकी मूर्ति है और इस पृथ्वीपर सबको मोक्ष माने गये हैं। ब्राह्मणके ही मुखसे देवता हव्यका और प्रदान करनेवाला है। ब्राह्मण सब लोगोंका गुरु, पूज्य पितर कव्यका उपभोग करते हैं। ब्राह्मणके बिना दान, और तीर्थस्वरूप मनुष्य है। ब्रह्माजीने उसे सब होम और बलि-सब निष्फल होते हैं। जहाँ ब्राह्मणोंको देवताओंका आश्रय बनाया है। पूर्वकालमें नारदजीने भोजन नहीं दिया जाता, वहाँ असुर, प्रेत, दैत्य और इसी विषयको ब्रह्माजीसे इस प्रकार पूछा था-'ब्रह्मन्! राक्षस भोजन करते हैं। अतः दान-होम आदिमें किसकी पूजा करनेपर भगवान् लक्ष्मीपति प्रसन्न ब्राह्मणको बुलाकर उन्हींसे सब कर्म कराना चाहिये। होते है?'
उत्तम देश-कालमें और उत्तम पात्रको दिया हुआ दान ब्रह्माजी बोले-जिसपर ब्राह्मण प्रसन्न होते हैं, लाखगुना अधिक फलदायक होता है। ब्राह्मणको उसपर भगवान् श्रीविष्णु भी प्रसन्न हो जाते हैं। अतः देखकर श्रद्धापूर्वक उसको प्रणाम करना चाहिये। उसके ब्राह्मणकी सेवा करनेवाला मनुष्य परब्रह्म परमात्माको आशीर्वादसे मनुष्यकी आयु बढ़ती है, वह चिरजीवी प्राप्त होता है। ब्राह्मणके शरीरमें सदा ही श्रीविष्णुका होता है। ब्राह्मणको देखकर उसे प्रणाम न करनेसे, निवास है। जो दान, मान और सेवा आदिके द्वारा ब्राह्मणके साथ द्वेष रखनेसे तथा उसके प्रति अश्रद्धा प्रतिदिन ब्राह्मणोंकी पूजा करता है, उसके द्वारा मानो करनेसे मनुष्योंकी आयु क्षीण होती है, उनके धनशास्त्रीय विधिके अनुसार उत्तम दक्षिणासे युक्त सौ ऐश्वर्यका नाश होता है तथा परलोकमें उनकी दुर्गति होती यज्ञोंका अनुष्ठान हो जाता है। जिसके घरपर आया हुआ है। ब्राह्मणका पूजन करनेसे आयु, यश, विद्या और विद्वान् ब्राह्मण निराश नहीं लौटता, उसके सम्पूर्ण धनकी वृद्धि होती है तथा मनुष्य श्रेष्ठ दशाको प्राप्त होता पापोंका नाश हो जाता है तथा वह अक्षय स्वर्गको प्राप्त है-इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। जिन घरोंमें होता है। पवित्र देश-कालमें सुपात्र ब्राह्मणको जो धन ब्राह्मणके चरणोदकसे कीच नहीं होती, जहाँ वेद और दान किया जाता है, उसे अक्षय जानना चाहिये; वह शास्त्रोंकी ध्वनि नहीं सुनायी देती, जो यज्ञ, तर्पण और जन्म-जन्मान्तरोंमें भी फल देता रहता है। ब्राह्मणोंकी ब्राह्मणोंके आशीर्वादसे वञ्चित रहते हैं, वे स्मशानके पूजा करनेवाला मनुष्य कभी दरिद्र, दुःखी और रोगी नहीं समान हैं।
•न विप्रपादोदककर्दमानि न वेदशास्त्रप्रतिभोषितानि । स्वाहास्वधास्वस्तिविवर्जितानि श्मशानतुल्यानि गृहाणि तानि ॥
(४३ । १२७)