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सृष्टिखण्ड ] . . पितृभक्ति, पातिव्रत्य, समता, अद्रोह और विष्णुभक्तिरूप पञ्चमहायज्ञ .
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आदिका दर्शन करो, उसके बाद मुझे ठीक-ठीक देखकर उसे भ्राता, पिता अथवा पुत्र मानती है, वह भी जान सकोगे।
__ पतिव्रता है। द्विजश्रेष्ठ ! तुम उस पतिव्रताके पास ब्राह्मणने पूछा-तात ! पतिव्रता कौन है? जाओ और उसे अपना मनोरथ कह सुनाओ। उसका उसका शास्त्र-ज्ञान कितना बड़ा है? जिस कारण मैं नाम शुभा है। वह रूपवती युवती है, उसके हृदयमें दया उसके पास जा रहा हूँ, वह भी मुझे बतलाइये। भरी है। वह बड़ी यशस्विनी है। उसके पास जाकर तुम
श्रीभगवान् बोले-ब्रह्मन् ! नदियोंमें गङ्गाजी, अपने हितकी बात पूछो। स्त्रियोंमें पतिव्रता और देवताओंमें भगवान् श्रीविष्णु श्रेष्ठ व्यासजी कहते हैं-यों कहकर भगवान् वहीं हैं। जो पतिव्रता नारी प्रतिदिन अपने पतिके हितसाधनमें अन्तर्धान हो गये। उन्हें अदृश्य होते देख ब्राह्मणको लगी रहती है, वह अपने पितृकुल और पतिकुल दोनों बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने पतिव्रताके घर जाकर उसके कुलोकी सौ-सौ पीढ़ियोंका उद्धार कर देती है।* विषयमें पूछा। अतिथिकी बोली सुनकर पतिव्रता स्त्री
ब्राह्मणने पूछा-द्विजश्रेष्ठ ! कौन स्त्री पतिव्रता वेगपूर्वक घरसे निकली और ब्राह्मणको आया देख होती है ? पतिव्रताका क्या लक्षण है? मैं जिस प्रकार दरवाजेपर खड़ी हो गयी। ब्राह्मणने उसे देखकर इस बातको ठीक-ठीक समझ सकूँ, उस प्रकार उपदेश कीजिये।
श्रीभगवान् बोले-जो स्त्री पुत्रकी अपेक्षा सौगुने नेहसे पतिकी आराधना करती है, राजाके समान उसका भय मानती है और पतिको भगवान्का स्वरूप समझती है, वह पतिव्रता है। जो गृहकार्य करनेमें दासी, रमणकालमें वेश्या तथा भोजनके समय माताके समान आचरण करती है और जो विपत्तिमें स्वामीको नेक सलाह देकर मन्त्रीका काम करती है, वह स्त्री पतिव्रता मानी गयी है। जो मन, वाणी, शरीर और क्रियाद्वारा कभी पतिकी आज्ञाका उल्लङ्घन नहीं करती तथा हमेशा पतिके भोजन कर लेनेपर ही भोजन करती है, उस स्त्रीको पतिव्रता समझना चाहिये। जिस-जिस शय्यापर पति शयन करते हैं वहाँ-वहाँ जो प्रतिदिन यत्नपूर्वक उनकी पूजा करती है, पतिके प्रति कभी जिसके मनमें डाह नहीं पैदा होती, कृपणता नहीं आती और जो मान भी नहीं करती, पतिकी ओरसे आदर मिले या अनादर-दोनोंमें प्रसन्नतापूर्वक उससे कहा-'देवि ! तुमने जैसा देखा जिसकी समान बुद्धि रहती है, ऐसी खीको पतिव्रता और समझा है, उसके अनुसार स्वयं ही सोचकर मेरे कहते हैं। जो साध्वी स्त्री सुन्दर वेषधारी परपुरुषको लिये प्रिय और हितकी बात बताओ।'
* पतिव्रता च या नारी पत्युर्नित्यं हिते रता । कुलदयस्य पुरुषानुद्धरेल्सा शतं शतम् ॥ (४७॥ ५१) + पुत्राच्छतगुणं स्रहाद्राजानं च भयादथ । आराधयेत् पतिं शौरि या पश्येत् सा पतिव्रता ।
कायें दासी रतौ वेश्या भोजने जननीसमा। विपत्सु मन्त्रिणी भर्तुः सा च भार्या पतिव्रता ॥