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• अर्चवस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[संक्षिप्त पद्मपुराण
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दे दी। फिर तो तत्काल सूर्योदय हुआ और मुनिके बालक थे, तब उन्होंने अज्ञान और मोहवश एक शापसे पीड़ित ब्राह्मण राखका ढेर हो गया। फिर उस झींगुरके गुदादेशमें तिनका डालकर छोड़ दिया था। राखसे कामदेवके समान सुन्दर रूप धारण किये वह यद्यपि उन्हें उस समय धर्मका ज्ञान नहीं था, तथापि उस ब्राह्मण प्रकट हुआ। यह देखकर समस्त पुरवासी बड़े दोषके कारण उन्हें एक दिन और रात वैसा कष्ट भोगना विस्मयमें पड़े। देवता प्रसन्न हो गये। सब लोगोंका चित्त पड़ा। किन्तु माण्डव्य मुनिने समाधिस्थ होनेके कारण पूर्ण स्वस्थ हुआ। उस समय स्वर्गलोकसे सूर्यके समान शूलाघातजनित वेदनाका पूरी तरह अनुभव नहीं किया। तेजस्वी एक विमान आया और वह साध्वी अपने पतिके इसी प्रकार पतिव्रताके पतिने भी पूर्वजन्ममें एक कोढ़ी
ब्राह्मणका वध किया था, इसीसे उसके शरीरमें दुर्गन्धयुक्त कोढ़का रोग उत्पन्न हो गया था। किन्तु उसने ब्राह्मणको चार गौरीदान और तीन कन्यादान किये थे; इसीसे उसकी पत्नी पतिव्रता हुई। उस पत्नीके कारण ही वह मेरी समताको प्राप्त हुआ।
ब्राह्मणने कहा-नाथ ! यदि पतिव्रताका ऐसा माहात्म्य है; तब तो जिस पुरुषकी भी स्त्री व्यभिचारिणी न हो उसे स्वर्गकी प्राप्ति निश्चित है। सती स्त्रीसे सबका कल्याण होना चाहिये।
भगवान् श्रीविष्णु बोले-ठीक है। संसारमें कुछ स्त्रियाँ ऐसी कुलटा होती हैं, जो सर्वस्व अर्पण करनेवाले पुरुषके प्रतिकूल आचरण करती हैं। उनमें जो सर्वथा अरक्षणीय हो-जिसकी दुराचारसे रक्षा करना असम्भव हो, ऐसी स्त्रीको तो मनसे भी स्वीकार नहीं करना चाहिये। जो नारी कामके वशीभूत हो जाती है,
वह निर्धन, कुरूप, गुणहीन तथा नीच कुलके नौकर साथ उसपर बैठकर देवताओंके साथ स्वर्गको पुरुषको भी स्वीकार कर लेती है। मृत्युतकसे सम्बन्ध चली गयी।
जोड़नेमें उसे हिचक नहीं होती। वह गुणवान्, कुलीन, शुभा भी ऐसी ही पतिव्रता है; इसलिये वह मेरे अत्यन्त धनी, सुन्दर और रतिकार्यमें कुशल पतिका भी समान है। उस सतीत्वके प्रभावसे ही वह भूत, भविष्य परित्याग करके नीच पुरुषका सेवन करती है। विप्रवर ! और वर्तमान-तीनों कालोंकी बातें जानती है। जो इस विषयमें उमा-नारद-संवाद ही दृष्टान्त है; क्योंकि मनुष्य इस परम उत्तम पुण्यमय उपाख्यानको लोकमें नारदजी स्त्रियोंकी बहुत-सी चेष्टाएँ जानते हैं। नारद मुनि सुनायेगा, उसके जन्म-जन्मके किये हुए पाप नष्ट स्वभावसे ही संसारकी प्रत्येक बात जाननेकी इच्छा रखते हो जायेंगे।
हैं। एक बार वे अपने मनमें कुछ सोच-विचारकर ब्राह्मणने पूछा-भगवन् ! माण्डव्य मुनिके पर्वतोंमें उत्तम कैलासगिरिपर गये। वहाँ उन महात्मा शरीरमें शूलका आघात कैसे लगा? तथा पतिव्रता मुनिने पार्वतीजीको प्रणाम करके पूछा-'देवि ! मैं स्त्रीके पतिको कोढ़का रोग क्यों हुआ?
कामिनियोंकी कुचेष्टाएँ जानना चाहता हूँ। मैं इस विषयमें भगवान् श्रीविष्णु बोले-माण्डव्य मुनि जब बिलकुल अनजान हूँ और विनीत भावसे प्रश्न कर रहा