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सृष्टिखण्ड ] . पोखरे खुदाने, वृक्ष लगाने, पीपल और देवताओंकी पूजा करने आदिका माहात्म्य.
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घिनौने शरीरका सदा पालन किया है। उसका पोषण ऊपर स्थित हुए। नरोत्तम ब्राह्मणने भी यत्नपूर्वक करके बढ़ाया है। तुम अज्ञान-दोषसे युक्त थे, माता- माता-पिताकी आराधना करके थोड़े कालमें ही कुटुम्बपिताने तुम्हें सज्ञान बनाया है। चराचर प्राणियों- सहित भगवद्धामको प्राप्त किया। शिष्यगण ! यह पाँच सहित समस्त त्रिलोकीमें भी उनके समान पूज्य कोई महात्माओंका पवित्र उपाख्यान मैंने तुम्हें सुनाया है। जो नहीं है।
___इसका पाठ अथवा श्रवण करेगा, उसकी कभी दुर्गति व्यासजी कहते हैं-तदनन्तर देवगण मूक नहीं होगी। वह ब्रह्महत्या आदि पापोंसे कभी लिप्त नहीं चाण्डाल, पतिव्रता शुभा, तुलाधार वैश्य, सज्जनाद्रोहक हो सकता। मनुष्य करोड़ों गोदान करनेसे जिस फलको और वैष्णव संत-इन पाँचों महात्माओंको साथ ले प्राप्त करता है, पुष्कर तीर्थ और गङ्गानदीमें स्नान करनेसे प्रसन्नतापूर्वक भगवान्की स्तुति करते हुए वैकुण्ठधाममें उसे जिस फलकी प्राप्ति होती है, वही फल एक बार इस पधारे। वे सभी अच्युत-स्वरूप होकर सम्पूर्ण लोकोंके उपाख्यानके सुनने मात्रसे मिल जाता है।
पोखरे खुदाने, वृक्ष लगाने, पीपलकी पूजा करने, पौंसले (प्याऊ) चलाने, गोचरभूमि
छोड़ने, देवालय बनवाने और देवताओंकी पूजा करनेका माहात्म्य
ब्राह्मणोंने कहा-मुनिश्रेष्ठ ! यदि हमलोगोंपर इतना पुण्य प्राप्त होता है, जिससे वह एक-एक दिनके आपका अनुग्रह हो तो उन श्रेष्ठ कर्मोका वर्णन कीजिये, पुण्यके बदले एक-एक कल्पतक स्वर्गमें निवास करता जिनसे संसारमें कीर्ति और धर्मकी प्राप्ति होती है। है। जो पुरुष प्रतिदिन दूसरोंके उपकारके लिये चार हाथ
व्यासजीने कहा-जिसके खुदवाये हुए पोखरेमें कुआँ खोदता है, वह एक-एक वर्षके पुण्यका एक-एक अथवा वनमें गौएँ एक मास या सात दिनोंतक तृप्त रहती कल्पतक स्वर्गमें रहकर उपभोग करता है। जलाशय हैं, वह पवित्र होकर सम्पूर्ण देवताओंद्वारा पूजित होता बनानेका उपदेश देनेवालेको एक करोड़ वर्षातक स्वर्गका है। विशेषतः प्रतिष्ठाके द्वारा पवित्र हुई पोखरीके जलका निवास प्राप्त होता है तथा जो स्वयं जलाशय बनवाता है, दान करनेसे जो फल होता है, वह सब सुनो । पोखरेमें उसका पुण्य अक्षय होता है। जब मेघ वर्षा करता है, उस समय जलके जितने छोटे पूर्वकालकी बात है, किसी धनीके पुत्रने एक उछलते हैं, उतने ही हजार वर्षों तक पोखरा बनवानेवाला विख्यात जलाशयका निर्माण कराया, जिसमें उसने दस मनुष्य स्वर्गलोकका सुख भोगता है। जलसे खेती पकती हजार सोनेकी मुहरें व्यय की थीं। धनीने अपनी पूरी है, जिससे मनुष्यको प्रसन्नता होती है। जलके बिना शक्ति लगाकर प्राणपणसे चेष्टा करके बड़ी श्रद्धाके साथ प्राणोंका धारण करना असम्भव है। पितरोंका तर्पण, सम्पूर्ण प्राणियोंके उपकारके लिये वह कल्याणमय शौच, सुन्दर रूप और दुर्गन्धका नाश-ये सब जलपर जलाशय तैयार कराया था। कुछ कालके पश्चात् वह ही निर्भर हैं। इस जगत्में संग्रह किये हुए सम्पूर्ण निर्धन हो गया। उसके बाद एक दूसरा धनी उसके बीजोंका आधार जल ही है। कपड़े धोना और बर्तनोंको बनवाये हुए जलाशयका मूल्य देनेको उद्यत हुआ और मांज-धोकर चमकीला बनाना भी जलके ही अधीन है। कहा–'मैं इस जलाशयके लिये दस हजार स्वर्ण-मुद्राएँ इसीसे प्रत्येक कार्यमें जलको पवित्र माना गया है। अतः दूँगा। इसे खुदवानेका पुण्य तो तुम्हें मिल ही चुका है। सब प्रकारसे प्रयत्न करके सारा बल और सारा धन मैं केवल मूल्य देकर इसके ऊपर अपना अधिकार लगाकर बावली, कुआँ तथा पोखरा बनवाने चाहिये। करना चाहता हूँ। यदि तुम्हें लाभ जान पड़े तो मेरा जो निर्जल प्रदेशमें जलाशय बनवाता है, उसे प्रतिदिन प्रस्ताव स्वीकार करो।' धनीके ऐसा कहनेपर जलाशय