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सृष्टिखण्ड ]
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• तुलाधारके सत्य, समताकी प्रशंसा; मूक चाण्डाल आदिका परमधामगमन •
ब्राह्मणने कहा - भगवन्! यदि आपका मुझपर अनुग्रह है तो अब कन्यादानके फलका वर्णन कीजिये साथ ही उसकी यथार्थ विधि भी बतलाइये ।
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श्रीभगवान् बोले- ब्रह्मन् ! रूपवान् गुणवान् कुलीन, तरुण, समृद्धिशाली और धन-धान्यसे सम्पन्न वरको कन्यादान करनेका जो फल होता है, उसे श्रवण करो। जो मनुष्य आभूषणोंसे युक्त कन्याका दान करता है, उसके द्वारा पर्वत, वन और काननोंसहित सम्पूर्ण पृथ्वीका दान हो जाता है जो पिता कन्याका शुल्क लेकर खाता है, वह नरकमें पड़ता है। जो मूर्ख अपनी पुत्रीको बेच देता है, उसका कभी नरकसे उद्धार नहीं होता। जो लोभवश अयोग्य पुरुषको कन्यादान देता है, वह रौरव नरकमें पड़कर अन्तमें चाण्डाल होता है। * इसीसे विद्वान् पुरुष दामादसे शुल्क लेनेका कभी विचार भी मनमें नहीं लाते। अपनी ओरसे दामादको जो कुछ दिया जाता है, वह अक्षय हो जाता है। पृथ्वी, गौ, सोना, धन-धान्य और वस्त्र आदि जो कुछ दामादको दहेजके रूपमें दिया जाता है, सब अक्षय फलका देनेवाला होता है। जैसे कटी हुई डोर घड़े के साथ स्वयं
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ब्राह्मणने कहा – प्रभो! यदि मुझपर आपकी कृपा हो तो अब तुलाधारके चरित्र और अनुपम प्रभावका पूरा-पूरा वर्णन कीजिये ।
श्रीभगवान् बोले- जो सत्यका पालन करते हुए लोभ और दोषबुद्धिका त्याग करके प्रतिदिन कुछ दान करता है, उसके द्वारा मानो नित्यप्रति उत्तम दक्षिणासे युक्त सौ यज्ञोंका अनुष्ठान होता रहता है। सत्यसे सूर्यका उदय होता है, सत्यसे ही वायु चलती रहती है, सत्यके
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भी कुऍमें डूब जाती है, उसी प्रकार यदि दाता संकल्प किये हुए दानको भूल जाता है और दान लेनेवाला पुरुष फिर उसे याद दिलाकर माँगता नहीं तो वे दोनों नरकमें पड़ते हैं। सात्त्विक पुरुषको उचित है कि वह जामाताको दहेज में देनेके लिये निश्चित की हुई सभी वस्तुएँ अवश्य दे डाले। न देनेपर पहले तो वह नरकमें पड़ता है; फिर प्रतिग्रह लेनेवालेके दासके रूपमें जन्म ग्रहण करता है। जो बहुत खाता हो, अधिक दूर रहता हो, अत्यधिक धनवान् हो, जिसमें अधिक दुष्टता हो, जिसका कुल उत्तम न हो तथा जो मूर्ख होइन छः मनुष्योंको कन्या नहीं देनी चाहिये। इसी प्रकार अतिवृद्ध, अत्यन्त दीन, रोगी, अति निकट रहनेवाले, अत्यन्त क्रोधी और असन्तुष्ट - इन छः व्यक्तियोंको भी कन्यादान नहीं करना चाहिये। इन्हें कन्या देकर मनुष्य नरकमें पड़ता है। धनके लोभसे या सम्मान मिलनेकी आशासे जो कन्या देता या एक कन्या दिखाकर दूसरीका विवाह कर देता है, वह भी नरकगामी होता है। जो प्रतिदिन इस परम उत्तम पुण्यमय उपाख्यानका श्रवण करता है, उसके जन्म-जन्मके पाप नष्ट हो जाते हैं।
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तुलाधारके सत्य और समताकी प्रशंसा, सत्यभाषणकी महिमा, लोभ-त्यागके विषयमें एक शूद्रकी कथा और मूक चाण्डाल आदिका परमधामगमन
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* यः पुनः शुल्कमश्रति स याति नरकं नरः। विक्रीत्वा चात्मजां मूढो नरकान्न निवर्तते ॥ लोभादसदृशे पुंसि कन्यां यस्तु प्रयच्छति । रौरवं नरकं प्राप्य चाण्डाललं च गच्छति ॥
ही प्रभावसे समुद्र अपनी मर्यादाका उल्लङ्घन नहीं करता और भगवान् कच्छप इस पृथ्वीको अपनी पीठपर धारण किये रहते हैं। सत्यसे ही तीनों लोक और समस्त पर्वत टिके हुए हैं। जो सत्यसे भ्रष्ट हो जाता है, उस प्राणीको निश्चय ही नरकमें निवास करना पड़ता है। जो सत्य वाणी और सत्य कार्यमें सदा संलग्न रहता है, वह इसी शरीरसे भगवान् के धाममें जाकर भगवत्स्वरूप हो जाता है। सत्यसे ही समस्त ऋषि-मुनि मुझे प्राप्त होकर
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