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• अर्चवस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[संक्षिप्त पद्मपुराण
अपने समस्त बन्धु-बान्धवोंके साथ मेरे रमणीय धाममें लिये तो कहना ही क्या है। अमावास्या और युगादि पहुँचकर मुझमें ही लीन हो जाता है। माता-पिताकी तिथियोंको तथा चन्द्रमा और सूर्य-ग्रहणके दिन जो आराधनाके बलसे ही वह नरश्रेष्ठ मूक चाण्डाल तीनों पार्वण श्राद्ध करता है, वह अक्षय लोकका भागी होता लोकोंकी बातें जानता है। फिर इस विषयमें तुम्हें विस्मय है। उसके पितर उसे प्रिय आशीर्वाद और अनन्त भोग क्यों हो रहा है?
प्रदान करके दस हजार वर्षातक तप्त रहते हैं। इसलिये ब्राह्मणने पूछा-जगदीश्वर ! मोह और प्रत्येक पर्वपर पुत्रोंको प्रसन्नतापूर्वक पार्वण श्राद्ध करना अज्ञानवश पहले माता-पिताकी आराधना न करके फिर चाहिये। माता-पिताके इस श्राद्ध-यज्ञका अनुष्ठान करके भले-बुरेका ज्ञान होनेपर यदि मनुष्य पुनः माता-पिताकी मनुष्य सब प्रकारके बन्धनोंसे मुक्त हो जाता है। सेवा करना चाहे तो उसके लिये क्या कर्तव्य है? जो श्राद्ध प्रतिदिन किया जाता है, उसे नित्य श्राद्ध
श्रीभगवान् बोले-विप्रवर ! एक वर्ष, एक माना गया है। जो पुरुष श्रद्धापूर्वक नित्य श्राद्ध करता है, मास, एक पक्ष, एक सप्ताह अथवा एक दिन भी जिसने वह अक्षय लोकका उपभोग करता है। इसी प्रकार माता-पिताकी भक्ति की है, वह मेरे धामको प्राप्त होता कृष्णपक्षमें विधिपूर्वक काम्य श्राद्धका अनुष्ठान करके है।* तथा जो उनके मनको कष्ट पहुँचाता है, वह मनुष्य मनोवाञ्छित फल प्राप्त करता है। आषाढ़की अवश्य नरकमें पड़ता है। जिसने पहले अपने पूर्णिमाके बाद जो पाँचवाँ पक्ष आता है, [जिसे महालय माता-पिताकी पूजा की हो या न की हो, यदि उनकी या पितृपक्ष कहते हैं] उसमें पितरोंका श्राद्ध करना मृत्युके पश्चात् वह साँड़ छोड़ता है, तो उसे पितृभक्तिका चाहिये। उस समय सूर्य कन्याराशिपर गये हैं या फल मिल जाता है। जो बुद्धिमान् पुत्र अपना सर्वस्व नहीं-इसका विचार नहीं करना चाहिये। जब सूर्य लगाकर माता-पिताका श्राद्ध करता है, वह जातिस्मर कन्याराशिपर स्थित होते हैं, उस समयसे लेकर सोलह (पूर्वजन्मकी बातोंको स्मरण करनेवाला) होता है और दिन उत्तम दक्षिणाओंसे सम्पन्न यज्ञोंके समान महत्त्व उसे पितृ-भक्तिका पूरा फल मिल जाता है। श्राद्धसे रखते हैं। उन दिनोंमें इस परम पवित्र काम्य श्राद्धका बढ़कर महान् यज्ञ तीनों लोकोंमें दूसरा कोई नहीं है। अनुष्ठान करना उचित है। इससे श्राद्धकर्ताका मङ्गल इसमें जो कुछ दान दिया जाता है, वह सब अक्षय होता होता है। यदि उस समय श्राद्ध न हो सके तो जब सूर्य है। दूसरोंको जो दान दिया जाता है; उसका फल दस तुलाराशिपर स्थित हों, उसी समय कृष्णपक्ष आदिमें उक्त हजारगुना होता है। अपनी जातिवालोंको देनेसे लाख- श्राद्ध करना उचित है। गुना, पिण्डदानमें लगाया हुआ धन करोड़गुना और चन्द्रग्रहणके समय सभी दान भूमिदानके समान ब्राह्मणको देनेपर वह अनन्त गुना फल देनेवाला बताया होते हैं, सभी ब्राह्मण व्यासके समान माने जाते हैं और गया हैं। जो गङ्गाजीके जलमें और गया, प्रयाग, पुष्कर, समस्त जल गङ्गाजलके तुल्य हो जाता है। चन्द्रग्रहणमें काशी, सिद्धकुण्ड तथा गङ्गा-सागर-सङ्गम तीर्थमें दिया हुआ दान और समयकी अपेक्षा लाखगुना तथा पितरोंके लिये अन्नदान करता है, उसकी मुक्ति निश्चित है सूर्य-ग्रहण दस लाखगुना अधिक फल देनेवाला बताया तथा उसके पितर अक्षय स्वर्ग प्राप्त करते हैं। उनका गया है। और यदि गङ्गाजीका जल प्राप्त हो जाय, तब जन्म सफल हो जाता है। जो विशेषतः गङ्गाजीमें तो चन्द्रग्रहणका दान करोड़गुना और सूर्यग्रहणमें दिया तिलमिश्रित जलके द्वारा तर्पण करता है, उसे भी मोक्षका हुआ दान दस करोड़गुना अधिक फल देनेवाला होता मार्ग मिल जाता है। फिर जो पिण्डदान करता है, उसके है। विधिपूर्वक एक लाख गोदान करनेसे जो फल प्राप्त
*दिनैक मासपक्षं वा पक्षाद्धं वापि वत्सरम् । पित्रोभक्तिः कृता येन स च गच्छेन्ममालयम् ॥ (४७ । २०८)