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अर्थयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् •
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ब्राह्मणोंके जीविकोपयोगी कर्म और उनका महत्त्व तथा गौओंकी महिमा और गोदानका फल
नारदजीने पूछा— प्रभो ! उत्तम ब्राह्मणोंकी पूजा करके तो सब लोग श्रेष्ठ गति प्राप्त करते हैं; किन्तु जो उन्हें कष्ट पहुँचाते हैं, उनकी क्या गति होती है?
लात
ब्रह्माजी बोले- क्षुधासे संतप्त हुए उत्तम ब्राह्मणोंका जो लोग अपनी शक्तिके अनुसार भक्तिपूर्वक सत्कार नहीं करते, वे नरकमें पड़ते हैं। जो क्रोधपूर्वक कठोर शब्दोंमें ब्राह्मणकी निन्दा करके उसे द्वारसे हटा देते हैं, वे अत्यन्त घोर महारौरव एवं कृच्छ्र नरकमें पड़ते हैं तथा नरकसे निकलनेपर कीड़े होते हैं। उससे छूटनेपर चाण्डालयोनिमें जन्म लेते हैं। फिर रोगी एवं दरिद्र होकर भूखसे पीड़ित होते हैं। अतः भूखसे पीड़ित हो घरपर आये हुए ब्राह्मणका कभी अपमान नहीं करना चाहिये। जो देवता, अग्नि और ब्राह्मणके लिये 'नहीं दूंगा' ऐसा वचन कहता है, वह सौ बार नीचेकी योनियोंमें जन्म लेकर अन्तमें चाण्डाल होता है। उठाकर ब्राह्मण, गौ, पिता-माता और गुरुको मारता है, उसका रौरव नरकमें वास निश्चित है; वहाँसे कभी उसका उद्धार नहीं होता। यदि पुण्यवश जन्म हो भी जाय तो वह पङ्गु होता है। साथ ही अत्यन्त दीन, विषादग्रस्त और दुःखशोकसे पीड़ित रहता है। इस प्रकार तीन जन्मोंतक कष्ट भोगनेके बाद ही उसका उद्धार होता है। जो पुरुष मुक्कों, तमाचों और कीलोंसे ब्राह्मणको मारता है, वह एक कल्पतक तापन और रौरव नामक घोर नरकमें निवास करता है और पुनः जन्म लेनेपर कुत्ता होता है। उसके बाद चाण्डालयोनिमें जन्म लेकर दरिद्र और उदरशूलसे पीड़ित होता है। माता, पिता, ब्राह्मण, स्नातक, तपस्वी और गुरुजनोंको क्रोधपूर्वक मारकर मनुष्य दीर्घकालतक कुम्भीपाक नरकमें पड़ा रहता है। इसके बाद वह कीट-योनिमें जन्म लेता है। बेटा नारद! जो ब्राह्मणोंके विरुद्ध कठोर वचन बोलता है, उसके
[ संक्षिप्त पद्मपुराण
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शरीरमें आठ प्रकारकी कोढ़ होती है-खुजली, दाद, मण्डल, (चकत्ता), शुक्ति (सफेदी), सिध्म (सेहुँआ ), काली कोढ़, सफेद कोढ़ और तरुण कुष्ठ – इनमें काली कोढ़, सफेद कोढ़ और अत्यन्त दारुण तरुण कुष्ठ — ये तीन महाकुष्ठ माने गये हैं। जो जान-बूझकर महापातकमें प्रवृत्त होते हैं अथवा महापातकी पुरुषोंका सङ्ग करते हैं अथवा अतिपातकका आचरण करते हैं, उनके शरीरमें ये तीनों प्रकारके कुष्ठ होते हैं। संसर्गसे अथवा परस्पर सम्बन्ध होनेसे मनुष्यों में इस रोगका संक्रमण होता है। इसलिये विवेकी पुरुष कोढ़ीसे दूर ही रहे। उसका स्पर्श हो जानेपर तुरंत स्नान कर ले। पतित, कोढ़ी, चाण्डाल, गोभक्षी, कुत्ता, रजस्वला स्त्री और भीलका स्पर्श हो जानेपर तत्काल स्नान करना चाहिये।
जो ब्राह्मणकी न्यायोपार्जित जीविका तथा उसके धनका अपहरण करते हैं, वे अक्षय नरकमें पड़ते हैं। जो चुगलखोर मनुष्य ब्राह्मणोंका छिद्र ढूँढ़ा करता है, उसे देखकर या स्पर्श करके वस्त्रसहित जलमें गोता लगाना चाहिये। ब्राह्मणके धनका यदि कोई प्रेमसे उपभोग कर ले, तो भी वह उसकी सात पीढ़ियोंतकको जला डालता है। और जो पराक्रमपूर्वक छीनकर उसका उपभोग करता है, वह तो दस पीढ़ी पहले और दस पीढ़ी पीछेतकके पुरुषोंको नष्ट करता है। विषको विष नहीं कहते, ब्राह्मणका धन ही विष कहलाता है। विष तो केवल उसके खानेवालेको ही मारता है, किन्तु ब्राह्मणका धन पुत्र-पौत्रोंका भी नाश कर डालता है। जो मोहवश माता, ब्राह्मणी अथवा गुरुकी स्त्रीके साथ समागम करता है, वह घोर रौरव नरकमें पड़ता है वहाँसे पुनः मनुष्ययोनिमें आना कठिन होता है।
नारदजीने पूछा- पिताजी! सभी ब्राह्मणोंकी हत्यासे बराबर ही पाप लगता है अथवा किसीमें कुछ