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सृष्टिखण्ड ]
• उत्तम ब्राह्मण और गायत्री मन्त्रकी महिमा •
नारदजीने पूछा- पिताजी! कौन ब्राह्मण अत्यन्त पूजनीय है ? ब्राह्मण और गुरुके लक्षणका यथावत् वर्णन कीजिये ।
ब्रह्माजीने कहा- वत्स ! श्रोत्रिय और सदाचारी ब्राह्मणकी नित्य पूजा करनी चाहिये। जो उत्तम व्रतका पालन करनेवाला और पापोंसे मुक्त है, वह मनुष्य तीर्थस्वरूप है। उत्तम श्रोत्रियकुलमें उत्पन्न होकर भी जो वैदिक कर्मोका अनुष्ठान नहीं करता, वह पूजित नहीं होता तथा असत् क्षेत्र (मातृकुल) में जन्म लेकर भी जो वेदानुकूल कर्म करता है, वह पूजाके योग्य है— जैसे महर्षि वेदव्यास और ऋष्यशृङ्ग * विश्वामित्र यद्यपि क्षत्रियकुलमें उत्पन्न हैं, तथापि अपने सत्कर्मों के कारण वे मेरे समान हैं; इसलिये बेटा! तुम पृथ्वीके तीर्थस्वरूप श्रोत्रिय आदि ब्राह्मणोंके लक्षण सुनो, इनके सुननेसे सब पापोंका नाश होता है। ब्राह्मणके बालकको जन्मसे ब्राह्मण समझना चाहिये। संस्कारोंसे उसकी 'द्विज' संज्ञा होती है तथा विद्या पढ़नेसे वह 'विप्र' नाम धारण करता है। इस प्रकार जन्म, संस्कार और विद्या - इन तीनोंसे युक्त होना श्रोत्रियका लक्षण है जो विद्या, मन्त्र तथा वेदोंसे शुद्ध होकर तीर्थस्नानादिके कारण और भी पवित्र हो गया है, वह ब्राह्मण परम पूजनीय माना गया है। जो सदा भगवान् श्रीनारायणमें भक्ति रखता है, जिसका अन्तःकरण शुद्ध है, जिसने अपनी इन्द्रियों और क्रोधको जीत लिया है, जो सब लोगोंके प्रति समान भाव रखता है, जिसके हृदयमें गुरु, देवता और अतिथिके प्रति भक्ति
* सच्छ्रोत्रियकुले जातो अक्रियो नैव पूजितः । असत्क्षेत्रकुले
पित्रोः शुश्रूषणे
+ जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेयः संस्कारैर्द्विज उच्यते। विद्यया विद्यापूतो वेदपूतस्तथैव शुद्धान्तःकरणस्तथा। जितेन्द्रियो
मन्त्रपूतो
नारायणे
सदा भक्तः
रतः । परदारे सन्ततिः । अस्यैव
गुरुदेवातिथेर्भक्तः पुराणकथको निर्त्य धर्माख्यानस्य
है, जो पिता-माताकी सेवामें लगा रहता है, जिसका मन परायी स्त्रीमें कभी सुखका अनुभव नहीं करता, जो सदा पुराणोंकी कथा कहता और धार्मिक उपाख्यानोंका प्रसार करता है, उस ब्राह्मणके दर्शनसे प्रतिदिन अश्वमेध आदि यज्ञोंका फल प्राप्त होता है। जो प्रतिदिन स्नान, ब्राह्मणोंका पूजन तथा नाना प्रकारके व्रतोंका अनुष्ठान करनेसे पवित्र हो गया है तथा जो गङ्गाजीके जलका सेवन करता है, उसके साथ वार्तालाप करनेसे ही उत्तम गतिकी प्राप्ति होती है। जो शत्रु और मित्र दोनोंके प्रति दयाभाव रखता है, सब लोगोंके साथ समताका बर्ताव करता है, दूसरेका धन - जंगलमें पड़ा हुआ तिनका भी नहीं चुराता, काम और क्रोध आदि दोषोंसे मुक्त है, जो इन्द्रियोंके वशमें नहीं होता, यजुर्वेद में वर्णित चतुर्वेदमयी शुद्ध तथा चौबीस अक्षरोंसे युक्त त्रिपदा गायत्रीका प्रतिदिन जप करता है तथा उसके भेदोंको जानता है, वह ब्रह्मपदको प्राप्त होता है।
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नारदजीने पूछा- पिताजी! गायत्रीका क्या लक्षण है, उसके प्रत्येक अक्षरमें कौन-सा गुण है तथा उसकी कुक्षि, चरण और गोत्रका क्या निर्णय है - इस बातको स्पष्टरूपसे बताइये ।
ब्रह्माजी बोले- वत्स ! गायत्री मन्त्रका छन्द गायत्री और देवता सविता निश्चित किये गये हैं। गायत्री देवीका वर्ण शुक्र, मुख अग्नि और ऋषि विश्वामित्र हैं। ब्रह्माजी उनके मस्तकस्थानीय हैं। उनकी शिखा रुद्र और हृदय श्रीविष्णु हैं। उनका उपनयन-कर्ममें विनियोग होता
पूज्यो व्यासवैभाण्डको
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च तीर्थस्नानादिभिर्मेध्यो
यथा ॥
याति विप्रत्वं
त्रिभिः
श्रोत्रियलक्षणम् ॥ विप्रः पूज्यतमः स्मृतः ॥ जितक्रोधः समः सर्वजनेषु च ॥ मनो यस्य कदाचित्रैव
मोदते ॥
दर्शनान्नित्यमश्वमेधादिजं
(४३ | १३१)
फलम् ॥
(४३ । १३४-३८)