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सष्टिखण्ड ]
. श्रीरामका लङ्का आदि होते हुए गङ्गातटपर भगवान् श्रीवामनकी स्थापना करना .
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विध्वंस करनेवाले गौरीपते ! आपको नमस्कार है। आप विश्वके आत्मा, संसारकी सृष्टि करनेवाले तथा सम्पूर्ण ही शर्व', रुद्र, भव' और वरद आदि नामोंसे प्रसिद्ध विश्वको व्याप्त करके स्थित है; आपको नमस्कार है। आप है। आपको नमस्कार है। आप पशुओं (जीवों) के दिव्यस्वरूप, शरणागतका कष्ट दूर करनेवाले, भक्तोंपर स्वामी, नित्य उग्रस्वरूप तथा जटाजूट धारण करनेवाले सदा ही दया रखनेवाले तथा विश्वके तेज और मनमें व्याप्त है; आपको नमस्कार है। आप ही महादेव, भीम और रहनेवाले हैं। आपको बारम्बार नमस्कार है।* त्र्यम्बक (त्रिनेत्रधारी) कहलाते हैं, आपको नमस्कार पुलस्त्यजी कहते हैं-इस प्रकार स्तुति करनेपर है। प्रजापालक, सबके ईश्वर, भग देवताके नेत्र देवाधिदेव महादेवजीने अपने सामने खड़े हुए फोड़नेवाले तथा अन्धकासुरका वध करनेवाले भी आप श्रीरामचन्द्रजीसे कहा-'रघुनन्दन ! आपका कल्याण ही हैं; आपको नमस्कार है। आप नीलकण्ठ, भीम, वेधा हो। कमलनयन परमेश्वर ! आप देवताओंके भी (विधाता), ब्रह्माजीके द्वारा स्तुत, कुमार कार्तिकेयके आराध्य देव और सनातन पुरुष हैं। नररूपमें छिपे हुए शत्रुका विनाश करनेवाले, कुमारको जन्म देनेवाले, साक्षात् नारायण हैं। इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। विलोहित, धूम्र, शिव', क्रथन', नीलशिखण्ड, देवताओंका कार्य सिद्ध करनेके लिये ही आपने अवतार शूली (त्रिशूलधारी), दिव्यशायी," उग्र और त्रिनेत्र ग्रहण किया था, सो अब इस अवतारका सारा कार्य आदि नामोंसे प्रसिद्ध है। सोना और धन आपका वीर्य आपने पूर्ण कर दिया है। आपके बनाये हुए मेरे इस है। आपका स्वरूप किसीके चिन्तनमें नहीं आ सकता। स्थानपर समुद्रके समीप आकर जो मनुष्य मेरा दर्शन आप देवी पार्वतीके स्वामी हैं। सम्पूर्ण देवता आपकी करेंगे, वे यदि महापापी होंगे तो भी उनके सारे पाप नष्ट स्तुति करते हैं। आप शरण लेने योग्य, कामना करने हो जायेंगे। ब्रह्महत्या आदि जो कोई भी घोर पाप हैं, वे योग्य और सद्योजात २ नामसे प्रसिद्ध हैं, आपको मेरे दर्शनमात्रसे नष्ट हो जाते हैं-इसमें अन्यथा विचार नमस्कार है। आपकी ध्वजामें वृषभका चिह्न है। आप करनेकी आवश्यकता नहीं है। अच्छा, अब आप मुण्डित भी हैं और जटाधारी भी। आप ब्रह्मचर्यव्रतका जाइये और गङ्गाजीके तटपर भगवान् श्रीवामनकी पालन करनेवाले, तपस्वी, शान्त, ब्राह्मणभक्त, जयस्वरूप, स्थापना कीजिये। पृथ्वीके आठ भाग करके [उन्हें
१.प्रलय-कालमें संसारका संहार करनेवाले। २. जगत्को रुलानेवाले। ३. संसारकी उत्पत्तिके कारण। ४. वर देनेवाले। ५. भयंकर रूप धारण करनेवाले। ६. लाल रंगवाले। ७. धुएँके समान रंगवाले। ८, कल्याणस्वरूप । ९. मारनेवाले। १०. नीले रंगका जटाजूट धारण करनेवाले। ११. दिव्यरूपसे शयन करनेवाले। १२. भक्तोंको प्रार्थनासे तत्काल प्रकट होनेवाले।
* नमस्ते देवदेवेश भक्तानामभयंकर । गौरीकान्त नमस्तुभ्यं दक्षयज्ञविनाशन । नमः शर्वाय रुद्राय भवाय वरदाय चापशनां पतये नित्यमुयाय च कपर्दिने । महादेवाय भीमाय त्र्यम्बकाय विशाम्पते। ईशानाय भगनाय नमोऽस्त्वन्धकघातिने ॥ नीलग्रीवाय भीमाय वेधसे वेधसा स्तुत । कुमारशत्रुनिमाय कुमारजननाय च ॥ विलोहिताय भूप्राय शिवाय क्रथनाय च। नित्यं नीलशिखण्डाय शूलिने दिव्यशायिने । उपाय च त्रिनेत्राय हिरण्यवसुरेतसे । अचिन्त्यायाम्बिकाभत्रे सर्वदेवस्तुताय च॥ अभिगम्याय काम्याय सद्योजाताय वै नमः । वृषध्वजाय मुण्डाय जटिने ब्रह्मचारिणे ॥ तप्यमानाय शान्ताय ब्रह्मण्याय जयाय च । विश्वात्मने विश्वसृजे विश्वमावृत्य तिष्ठते ॥ नमो नमस्ते दिव्याय प्रपन्नार्तिहराय च। भक्तानुकम्पिने नित्यं विश्वतेजोमनोगते ।
(३५।१३९-१४७) इह खया कृते स्थाने मदीये रघुनन्दन । आगत्य मानवा राम पश्येयुरिह सागरे । महापातकयुक्ता ये तेषां पापं विनक्ष्यति । ब्रह्मवध्यादि पापानि दुष्टानि यानि कानिचित्॥ दर्शनादेव नश्यन्ति नान कार्या विचारणा । (३५।१५२-१५३)