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. . अयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् ..
[संक्षिप्त पद्मपुराण
क्रोधसे चञ्चल हो उठे। यद्यपि वह महान् असुर वर्षातक पञ्चाग्नि-सेवन कर, सौ वर्षांतक केवल पत्ते देवराजसे बदला लेनेकी पूरी शक्ति रखता था, तथापि चबाकर तथा सौ वर्षोंतक सिर्फ जल पीकर तपस्या उस महाबलीने पुनः तप करनेका ही निश्चय किया। करता रहा। इस प्रकार जब उसका शरीर अत्यन्त दुर्बल उसका संकल्प जानकर ब्रह्माजी वहाँ आये और उससे और तपका पुञ्ज हो गया, तब ब्रह्माजीने आकर कहापूछने लगे-'बेटा! तुम फिर किसलिये तपस्या 'दैत्यराज ! तुमने उत्तम व्रतका पालन किया है, कोई वर करनेको उद्यत हुए हो?' वज्राङ्गने कहा-'पितामह ! माँगो।' उसने कहा-'किसी भी प्राणीसे मेरी मृत्यु न आपकी आज्ञा मानकर समाधिसे उठनेपर मैंने देखा- हो।' तव ब्रह्माजीने कहा-'देहधारियोंके लिये मृत्यु इन्द्रने वराङ्गीको बहुत त्रास पहुँचाया हैअतः यह मुझसे निश्चित है; इसलिये तुम जिस किसी निमित्तसे भी, ऐसा पुत्र चाहती है, जो इसे इस विपत्तिसे उबार दे। जिससे तुम्हें भय न हो, अपनी मृत्यु माँग लो।' तब दादाजी ! यदि आप मुझपर सन्तुष्ट हैं तो मुझे ऐसा दैत्यराज तारकने बहुत सोच-विचारकर सात दिनके पुत्र दीजिये।'
बालकसे अपनी मृत्यु माँगी। उस समय वह महान् ब्रह्माजी बोले-वीर ! ऐसा ही होगा। अब तुम्हें असुर घमंडसे मोहित हो रहा था। ब्रह्माजी 'तथास्तु' तपस्या करनेकी आवश्यकता नहीं है। तुम्हारे तारक कहकर अपने धामको चले और दैत्य अपने घर लौट नामका एक महाबली पुत्र होगा।
गया। वहाँ जाकर उसने अपने मन्त्रियोंसे कहा___ ब्रह्माजीके ऐसा कहनेपर दैत्यराजने उन्हें प्रणाम 'तुमलोग शीघ्र ही मेरी सेना तैयार करो।' ग्रसन नामका किया और वनमें जाकर अपनी रानीको, जिसका हृदय दानव दैत्यराज तारकका सेनापति था। उसने स्वामीकी दुःखी था, प्रसन्न किया। वे दोनों पति-पत्नी सफल- बात सुनकर बहुत बड़ी सेना तैयार की। गम्भीर स्वरमें मनोरथ होकर अपने आश्रममें गये। सुन्दरी वराङ्गी रणभेरी बजाकर उसने तुरंत ही बड़े-बड़े दैत्योंको अपने पतिके द्वारा स्थापित किये हुए गर्भको पूरे एक एकत्रित किया, जिनमें एक-एक दैत्य प्रचण्ड पराक्रमी हजार वर्षातक उदरमें ही धारण किये रही। इसके बाद होनेके साथ ही दस-दस करोड़ दैत्योंका यूथपति था। उसने पुत्रको जन्म दिया। उस दैत्यके पैदा होते ही सारी जम्भ नामक दैत्य उन सबका अगुआ था और कुजम्भ पृथ्वी डोलने लगी-सर्वत्र भूकम्प होने लगा। उसके पीछे चलनेवाला था। इनके सिवा महिष, कुञ्जर, महासागर विक्षुब्ध हो उठे। वराङ्गी पुत्रको देखकर हर्षसे मेघ, कालनेमि, निमि, मन्थन, जम्भक और शुम्भ भी भर गयी। दैत्यराज तारक जन्मते ही भयंकर पराक्रमी हो प्रधान थे। इस प्रकार ये दस दैत्यपति सेनानायक थे। गया। कुजम्भ और महिष आदि मुख्य-मुख्य असुरोंने उनके अतिरिक्त और भी सैकड़ों ऐसे दानव थे, जो मिलकर उसे राजाके पदपर अभिषिक्त कर दिया। अपनी भुजाओंपर पृथ्वीको तोलनेकी शक्ति रखते थे। दैत्योंका महान् साम्राज्य प्राप्त करके दानवश्रेष्ठ तारकने दैत्योंमें सिंहके समान पराक्रमी तारकासुरकी वह सेना कहा-'महाबली असुरो और दानवो! तुम सब लोग बड़ी भयङ्कर जान पड़ती थी। वह मतवाले गजराजों, मेरी बात सुनो। देवगण हमलोगोंके वंशका नाश घोड़ों और रथोंसे भरी हुई थी। पैदलोंकी संख्या भी करनेवाले हैं। जन्मगत स्वभावसे ही उनके साथ हमारा बहुत थी और सेनामें सब ओर पताकाएँ फहरा रही थीं। अटूट वैर बढ़ा हुआ है। अतः हम सब लोग इसी बीचमें देवताओंके दूत वायु असुरलोकमें देवताओंका दमन करनेके लिये तपस्या करेंगे।' : आये और दानव-सेनाका उद्योग देखकर इन्द्रको उसका
पुलस्त्यजी कहते हैं-राजन् ! यह सन्देश समाचार देनेके लिये गये। देवसभा पहुँचकर उन्होंने सुनाकर सबकी सम्मति ले तारकासुर पारियात्र पर्वतपर देवताओंके बीच में इस नयी घटनाका हाल सुनाया। उसे चला गया और वहाँ सौ वर्षोंतक निराहार रहकर, सौ सुनकर महाबाहु देवराजने आँखें बंद करके बृहस्पतिजीसे