________________
१०२
• अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् •
प्रदान करता है। उस तीर्थमें दीप दान करनेसे ज्ञाननेत्रकी प्राप्ति होती है, मनुष्य अतीन्द्रिय पदमें स्थित होता है और धूप दानसे उसे ब्रह्मधाम प्राप्त होता है। अधिक क्या कहा जाय, प्राची सरस्वती और गङ्गाके सङ्गममें जो कुछ दिया जाता है, वह जीते-जी तथा मरनेके बाद भी अक्षयफल प्रदान करनेवाला होता है। वहाँ स्नान, जप और होम करनेसे अनन्त फलकी सिद्धि होती है।
भगवान् श्रीरामचन्द्रजीने भी उस तीर्थमें आकर मार्कण्डेयजीके कथनानुसार अपने पिता दशरथजीके लिये पिण्ड दान और श्राद्ध किया था। वहाँ एक चौकोर बावली है, जहाँ पिण्डदान करनेवाले मनुष्य हंसयुक्त विमानसे स्वर्गको जाते हैं। यज्ञवेत्ताओंमें श्रेष्ठ ब्रह्माजीने उस तीर्थके ऊपर उत्तम दक्षिणाओंसे युक्त पितृमेध यज्ञ (श्राद्ध) किया था। उसमें उन्होंने वसुओंको पितर, रुद्रोंको पितामह और आदित्योंको प्रपितामह नियत किया था। फिर उन तीनोंको बुलाकर कहा - 'आपलोग सदा यहाँ विराजमान रहकर पिण्डदान आदि ग्रहण किया करें।' वहाँ जो पितृकार्य किया जाता है, उसका अक्षय फल होता है। पितर और पितामह सन्तुष्ट होकर उन्हें उत्तम जीविकाकी प्राप्तिके लिये आशीर्वाद देते हैं। वहाँ तर्पण करनेसे पितरोंकी तृप्ति होती है और पिण्डदान करनेसे उन्हें स्वर्ग मिलता है। इसलिये सब कुछ छोड़कर प्राची सरस्वती तीर्थमें तुम पिण्डदान करो। *
[ संक्षिप्त पद्मपुराण
प्रत्येक पुत्रको उचित है कि वह वहाँ जाकर अपने समस्त पितरोंको यत्नपूर्वक तृप्त करे। वहाँ प्राचीनेश्वर भगवान्का स्थान है। उसके सामने आदितीर्थ प्रतिष्ठित है, जो दर्शनमात्रसे मोक्ष प्रदान करनेवाला है। वहाँके जलका स्पर्श करके मनुष्य जन्म-मृत्युके बन्धनसे छुटकारा पा जाता है। उसमें स्नान करनेसे वह ब्रह्माजीका अनुचर होता है। जो मनुष्य आदितीर्थमें स्नान करके एकाग्रतापूर्वक थोड़ेसे अन्नका भी दान करता है, वह स्वर्गलोकको प्राप्त होता है जो विद्वान् वहाँ स्नान करके ब्रह्माजीके भक्तोंको सुवर्ण और खिचड़ी दान करता है, वह स्वर्गलोकमें सुखी एवं आनन्दित होता है। जहाँ प्राची सरस्वती विद्यमान हैं, वहाँ मनुष्य दूसरे साधनकी खोज क्यों करते हैं। प्राची सरस्वतीमें स्नान करनेसे जिस फलकी प्राप्ति होती है, उसीके लिये तो जप-तप आदि साधन किये जाते हैं। जो भगवती प्राची सरस्वतीका पवित्र जल पीते हैं, उन्हें मनुष्य नहीं, देवता समझना चाहिये- - यह मार्कण्डेय मुनिका कथन है। सरस्वती नदीके तटपर पहुँचकर स्नान करनेका कोई नियम नहीं है। भोजनके बाद अथवा भोजनके पहले, दिनमें अथवा रात्रिमें भी स्नान किया जा सकता है। वह तीर्थ अन्य सब तीर्थोकी अपेक्षा प्राचीन और श्रेष्ठ माना गया है। वह प्राणियोंके पापोंका नाशक और पुण्यजनक बतलाया गया है।
पुलस्त्यजीने कहा- राजन् ! मैं तुम्हें मार्कण्डेयजीके जन्मकी उत्तम कथा सुनाता हूँ। प्राचीन कल्पकी बात है; मृकण्डु नामसे विख्यात एक मुनि थे,
भीष्मजीने पूछा- मुने! मार्कण्डेयजीने वहाँ भगवान् श्रीरामचन्द्रजीको किस प्रकार उपदेश दिया तथा किस समय और कैसे उनका समागम हुआ ? मार्कण्डेयजी किसके पुत्र हैं, वे कैसे महान् तपस्वी हुए तथा उनके इस नामका क्या रहस्य है ? महामुने! इन सब बातोंका यथार्थ रूपसे वर्णन कीजिये ।
मार्कण्डेयजीके दीर्घायु होनेकी कथा और श्रीरामचन्द्रजीका लक्ष्मण और सीताके साथ पुष्करमें जाकर पिताका श्राद्ध करना तथा अजगन्ध शिवकी स्तुति करके लौटना जो महर्षि भृगुके पुत्र थे। वे महाभाग मुनि अपनी पत्नीके साथ वनमें रहकर तपस्या करते थे। वनमें रहते समय ही उनके एक पुत्र हुआ। धीरे-धीरे उसकी अवस्था पाँच वर्षकी हुई। वह बालक होनेपर भी गुणोंमें बहुत बढ़ा-चढ़ा था। एक दिन जब वह बालक आँगनमें घूम रहा था, किसी सिद्ध ज्ञानीने उसकी ओर देखा और बहुत देरतक ठहरकर उसके जीवनके विषयमें विचार किया। बालकके पिताने पूछा- 'मेरे पुत्रकी कितनी आयु है ?" सिद्ध बोला- 'मुनीश्वर ! विधाताने तुम्हारे पुत्रकी जो