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सृष्टिखण्ड ] • पुष्कर तीर्थकी महिमा, वहाँ वास करनेके नियम तथा आश्रम-धर्मका निरूपण -
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महाबली हैं। उन सबकी देवताओंके अंशसे उत्पत्ति हुई है। देवासुर संग्राममें जो महाबली असुर मारे गये थे, वे इस मनुष्यलोकमें उत्पन्न होकर सबको कष्ट दे रहे थे; उन्हींका संहार करनेके लिये भगवान् यदुकुलमें अवतीर्ण
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★ पुष्कर तीर्थकी महिमा, वहाँ वास करनेवाले लोगोंके लिये नियम तथा आश्रम धर्मका निरूपण
पुलस्त्यजी कहते हैं- राजन् ! मेरु-गिरिके शिखरपर श्रीनिधान नामक एक नगर है, जो नाना प्रकारके रत्नोंसे सुशोभित, अनेक आश्चयका घर तथा बहुतेरे वृक्षोंसे हरा-भरा है। भाँति-भाँतिकी अद्भुत धातुओंसे उसकी बड़ी विचित्र शोभा होती है। वह स्वच्छ स्फटिक मणिके समान निर्मल दिखायी देता है। वहाँ ब्रह्माजीका वैराज नामक भवन है, जहाँ देवताओंको सुख देनेवाली कान्तिमती नामकी सभा है। वह मुनिसमुदायसे सेवित तथा ऋषि महर्षियोंसे भरी रहती है । एक दिन देवेश्वर ब्रह्माजी उसी सभामें बैठकर
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हुए हैं। महात्मा यादवोंके एक सौ एक कुल हैं। भगवान् श्रीकृष्ण ही उन सबके नेता और स्वामी हैं तथा सम्पूर्ण यादव भी भगवान्की आज्ञाके अधीन रहकर ऋद्धि-सिद्धिसे सम्पन्न हो रहे हैं। *
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जगत्का निर्माण करनेवाले परमेश्वरका ध्यान कर रहे थे। ध्यान करते-करते उनके मनमें यह विचार उठा कि 'मैं किस प्रकार यज्ञ करूँ ? भूतलपर कहाँ और किस स्थानपर मुझे यज्ञ करना चाहिये ? काशी, प्रयाग, तुङ्गा (तुङ्गभद्रा), नैमिषारण्य, पुष्कर, काशी भद्रा, देविका, कुरुक्षेत्र, सरस्वती और प्रभास आदि बहुत-से तीर्थ हैं। भूमण्डलमें चारों ओर जितने पुण्य तीर्थ और क्षेत्र हैं, उन सबको मेरी आज्ञासे रुद्रने प्रकट किया है। जिससे मेरी उत्पत्ति हुई है, भगवान् श्रीविष्णुकी नाभिसे प्रकट हुए उस कमलको ही वेदपाठी ऋषि पुष्कर तीर्थ कहते हैं (पुष्कर तीर्थ उसीका व्यक्तरूप है)। इस प्रकार विचार करते-करते प्रजापति ब्रह्माके मनमें यह बात आयी कि अब मैं पृथ्वीपर चलूँ। यह सोचकर वे अपनी उत्पत्तिके प्राचीन स्थानपर आये और वहाँके उत्तम वनमें प्रविष्ट हुए, जो नाना प्रकारके वृक्षों और लताओंसे व्याप्त एवं भाँति-भाँति के फूलोंसे सुशोभित था। वहाँ पहुँचकर उन्होंने क्षेत्रकी स्थापना की, जिसका यथार्थरूपसे वर्णन करता हूँ। चन्द्रनदीके उत्तर प्राची सरस्वतीतक और नन्दन नामक स्थानसे पूर्व क्रम्य या कल्प नामक स्थानतक जितनी भूमि है, वह सब पुष्कर तीर्थके नामसे प्रसिद्ध है। इसमें लोककर्ता ब्रह्माजीने यज्ञ करनेके निमित्त वेदी बनायी। ब्रह्माजीने वहाँ तीन पुष्करोंकी कल्पना की। प्रथम ज्येष्ठ पुष्कर तीर्थ समझना चाहिये, जो तीनों लोकोंको पवित्र करनेवाला और विख्यात है,
* भीष्मजी भगवान् श्रीकृष्णसे अवस्थामें बहुत बड़े थे। ऐसी दशामें जिस समय उनके साथ पुलस्त्यजीका संवाद हो रहा था, उस समय संभवतः श्रीकृष्णका जन्म न हुआ हो। फिर भी पुलस्त्यजी त्रिकालदर्शी ऋषि है, इसलिये उनके लिये भावी घटनाओंका भी वर्तमान अथवा भूतकी भाँति वर्णन करना अस्वाभाविक नहीं कहा जा सकता।