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• अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[संक्षिप्त पद्मपुराण
गिरता।
सदा ही इस पुण्यप्रद दमाध्यायको दूसरोंको सुनाता है, चुराया हो, उसे ऋतुकालके बिना ही मैथुन करने, दिनमें वह ब्रह्मलोकको प्राप्त होता है तथा वहाँसे कभी नहीं सोने, एक दूसरेके यहाँ जाकर अतिथि बनने, जिस गाँवमें
एक ही कुँआ हो वहाँ निवास करने, ब्राह्मण होकर धर्मका सार सुनो और सुनकर उसे धारण करो- शूद्रजातिकी स्त्रीसे सम्बन्ध रखनेका पाप लगे और ऐसे जो बात अपनेको प्रतिकूल जान पड़े, उसे दूसरोंके लिये लोगोंको जिन लोकोंमें जाना पड़ता है, वहीं वह भी जाय । भी काममें न लाये। जो परायी स्त्रीको माताके समान, भरद्वाज बोले-जिसने मृणाल चुराये हों, वह पराये धनको मिट्टीके ढेलेके समान और सम्पूर्ण भूतोंको सबके प्रति क्रूर, धनके अभिमानी, सबसे डाह रखनेअपने आत्माके समान जानता है, वही ज्ञानी है। जिसकी वाले, चुगलखोर और रस बेचनेवालेकी गति प्राप्त करे। रसोई बलिवैश्वदेवके लिये और जीवन परोपकारके लिये गौतमने कहा-जिसने मृणालोंकी चोरी की हो, है, वही विद्वान् है। जैसे धातुओंमें सुवर्ण उत्तम है, वैसे वह सदा शूद्रका अन्न खानेवाले, परस्त्रीगामी और घरमें ही परोपकार सबसे श्रेष्ठ धर्म है, वही सर्वस्व है। सम्पूर्ण दूसरोंको न देकर अकेले मिष्टान्न भोजन करनेवालेके प्राणियोंके हितका ध्यान रखनेवाला पुरुष अमृतत्व प्राप्त समान पापका भागी हो। करता है।
विश्वामित्र बोले-जो मृणाल चुरा ले गया हो, पुलस्त्यजी कहते हैं-इस प्रकार ऋषियोंने वह सदा काम-परायण, दिनमें मैथुन करनेवाले, नित्य शुनःसखके सामने धर्मके सार-तत्त्वका प्रतिपादन करके पातकी, परायी निन्दा करनेवाले और परस्त्रीगामीकी गति उसके साथ वहाँसे दूसरे वनमें प्रवेश किया। वहाँ भी प्राप्त करे।। उन्हें एक बहुत विस्तृत जलाशय दिखायी दिया, जो पद्म जमदनिने कहा-जिसने मृणालोंकी चोरी की
और उत्पलोंसे आच्छादित था। उस सरोवरमें उतरकर हो, वह दुर्बुद्धि मनुष्य अपने माता-पिताका अपमान उन्होंने मृणाल उखाड़े और उन्हें ढेर-के-ढेर किनारेपर करनेके, अपनी कन्याके दिये हुए धनसे अपनी जीविका रखकर जलसे सम्पन्न होनेवाली पुण्यक्रिया-सन्ध्या- चलानेके, सदा दूसरेकी रसोईमें भोजन करनेके, परस्त्रीसे तर्पण आदि करने लगे। तत्पश्चात् जब वे जलसे बाहर सम्पर्क रखनेके और गौओंकी बिक्री करनेके पापका निकले तो उन मणालोको न देखकर परस्पर इस प्रकार भागी हो। कहने लगे।
पराशरजी बोले-जिसने मृणाल चुराये हों, वह ऋषि बोले-हम सब लोग क्षुधासे कष्ट पा रहे दूसरोंका दास एवं जन्म-जन्म क्रोधी हो तथा सब हैं-ऐसी दशा में किस पापी और क्रूरने मृणालोंको प्रकारके धर्मकर्मोसे हीन हो।। चुरा लिया?
शुनःसखने कहा-जिसने मृणालोंकी चोरी की जब इस तरह कुछ पता न लगा तब सबसे पहले हो, वह न्यायपूर्वक वेदाध्ययन करे, अतिथियोंमें प्रीति कश्यपजी बोले-जिसने मृणालकी चोरी की हो, उसे रखनेवाला गृहस्थ हो, सदा सत्य बोले, विधिवत् सर्वत्र सब कुछ चुरानेका, थाती रखी हुई वस्तुपर जी अग्रिहोत्र करे, प्रतिदिन यज्ञ करे और अन्तमें ललचानेका और झूठी गवाही देनेका पाप लगे। वह ब्रह्मलोकको जाय। दम्भपूर्वक धर्मका आचरण और राजाका सेवन करने, ऋषियोंने कहा-शुनःसख ! तुमने जो शपथ मद्य और मांसका सेवन करने, सदा झूठ बोलने, सूदसे की है, वह तो द्विजातिमात्रको अभीष्ट ही है; अतः तुम्हीने जीविका चलाने और रुपया लेकर लड़की बेचनेके हम सबके मृणालोंकी चोरी की है। पापका भागी हो।
शुनःसख बोले-ब्राह्मणो! मैने ही आपवसिष्ठजीने कहा-जिसने उन मृणालोंको लोगोंके मुँहसे धर्म सुननेकी इच्छासे ये मृणाल छिपा