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सृष्टिखण्ड ]
. आदित्य-शयन आदि ग्रत, तडागकी प्रतिष्ठा और यक्षारोपणकी विधि.
चाहिये। गोदानके पश्चात् ब्राह्मणोंको भक्तिपूर्वक इसका स्मरण और कीर्तनमात्र करनेसे देवराज इन्द्रका भक्ष्य-भोज्य पदार्थोसे तृप्त करके नाना प्रकारके वस्त्र दान सारा पाप नष्ट हो गया था। इसीके अनुष्ठानसे मेरी प्रिया करे। फिर स्वयं भी क्षार लवणसे रहित अन्नका भोजन सत्यभामाने मुझे पतिरूपमें प्राप्त किया। इस करके ब्राह्मणोंको विदा करे । पुत्र और स्त्रीके साथ आठ कल्याणमयी तिथिको सूर्यदेवने सहस्रों धाराओंसे स्नान पगतक उनके पीछे-पीछे जाय और इस प्रकार प्रार्थना किया था, जिससे उन्हें तेजोमय शरीरकी प्राप्ति हुई। करे–'हमारे इस कार्यसे देवताओंके स्वामी भगवान् इन्द्रादि देवताओं तथा करोड़ों दैत्योंने भी इस व्रतका श्रीविष्णु, जो सबका क्लेश दूर करनेवाले हैं, प्रसन्न हों। अनुष्ठान किया है। यदि एक मुखमें दस हजार करोड़ श्रीशिवके हृदयमें श्रीविष्णु हैं और श्रीविष्णुके हृदयमें (एक खरब) जिलाएँ हों तो भी इसके फलका पूरा वर्णन श्रीशिव विराजमान हैं। मैं इन दोनोंमें अन्तर नहीं नहीं किया जा सकता। देखता-इस धारणासे मेरा कल्याण हो।'* यह महादेवजी कहते है-ब्रह्मन् ! कलियुगके कहकर उन कलशों, गौओं, शय्याओं तथा वस्त्रोंको सब पापोंको नष्ट करनेवाली एवं अनन्त फल प्रदान ब्राह्मणोंके घर पहुँचवा दे। अधिक शय्याएँ सुलभ न हों करनेवाली इस कल्याणमयी तिथिकी महिमाका वर्णन तो गृहस्थ पुरुष एक ही शय्याको सब सामानोंसे यादवराजकुमार भगवान् श्रीकृष्ण अपने श्रीमुखसे सुसज्जित करके दान करे । भीमसेन ! वह दिन इतिहास करेंगे। जो इसके व्रतका अनुष्ठान करता है, उसके और पुराणोंके श्रवणमें ही बिताना चाहिये। अतः तुम भी नरकमें पड़े हुए पितरोंका भी यह उद्धार करनेमें समर्थ सत्त्वगुणका आश्रय ले, मात्सर्यका त्याग करके इस है। जो अत्यन्त भक्तिके साथ इस कथाको सुनता तथा व्रतका अनुष्ठान करो। यह बहुत गुप्त व्रत है, किन्तु दूसरोंके उपकारके लिये पढ़ता है, वह भगवान् स्नेहवश मैंने तुम्हें बता दिया है। वीर ! तुम्हारे द्वारा श्रीविष्णुका भक्त और इन्द्रका भी पूज्य होता है। पूर्व इसका अनुष्ठान होनेपर यह व्रत तुम्हारे ही नामसे प्रसिद्ध कल्पमें जो माघ मासकी द्वादशी परम पूजनीय होगा। इसे लोग 'भीमद्वादशी' कहेंगे। यह भीमद्वादशी कल्याणिनी तिथिके नामसे प्रसिद्ध थी, वही थाण्डुनन्दन सब पापोंको हरनेवाली और शुभकारिणी होगी। प्राचीन भीमसेनके व्रत करनेपर अनन्त पुण्यदायिनी कल्पोंमें इस व्रतको 'कल्याणिनी' व्रत कहा जाता था। 'भीमद्वादशी के नामसे प्रसिद्ध होगी।
_ आदित्य-शयन और रोहिणी-चन्द्र-शयन-व्रत, तडागकी प्रतिष्ठा, वृक्षारोपणकी विधि
तथा सौभाग्य-शयन-व्रतका वर्णन भीष्मजीने पूछा-ब्रह्मन् ! जो अभ्यास न होनेके जिसमें दिनभर उपवास करके रात्रिमें भोजनका विधान कारण अथवा रोगवश उपवास करनेमें असमर्थ है, हो; मैं ऐसे महान् व्रतका परिचय देता हूँ. सुनो। उस किन्तु उसका फल चाहता है, उसके लिये कौन-सा व्रत व्रतका नाम है-आदित्य-शयन। उसमें विधिपूर्वक उत्तम है-यह बताइये।
भगवान् शङ्करकी पूजा की जाती है। पुराणोंके ज्ञाता पुलस्त्यजीने कहा-राजन् ! जो लोग उपवास महर्षि जिन नक्षत्रोंके योगमें इस व्रतका उपदेश करते हैं, करने में असमर्थ हैं, उनके लिये वही व्रत अभीष्ट है, उन्हें बताता हूँ। जब सप्तमी तिथिको हस्त नक्षत्रके साथ
* प्रीयतामत्र देवेशः केशवः केशनाशनः ।।
शिवस्य हृदये विष्णुर्विष्णोच हृदये शिवः । यथान्तरं न पश्यामि तथा मे स्वस्ति चायुषः ।। संयपु० ४
(२३ । ५९-६०)