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सृष्टिखण्ड ]
• भीमद्वादशी-व्रतका विधान .
भीमद्वादशी-व्रतका विधान भीष्मजीने कहा-विप्रवर ! भगवान् शङ्करने परिचय देता हूँ। उस दिन निम्नाङ्कित विधिसे उपवास जिन वैष्णव-धर्मोका उपदेश किया है, उनका मुझसे करके तुम श्रीविष्णुके परम धामको प्राप्त करो। जिस दिन वर्णन कीजिये। वे कैसे हैं और उनका फल क्या है? माघ मासकी दशमी तिथि आये, उस दिन समस्त शरीरमें
पुलस्त्यजी बोले-राजन् ! प्राचीन रथन्तर घी लगाकर तिलमिश्रित जलसे स्रान करे तथा 'ॐ नमो कल्पकी बात है, पिनाकधारी भगवान् शङ्कर मन्दराचल- नारायणाय' इस मन्त्रसे भगवान् श्रीविष्णुका पूजन करे। पर विराजमान थे। उस समय महात्मा ब्रह्माजीने स्वयं ही 'कृष्णाय नमः' कहकर दोनों चरणोंकी और 'सर्वात्मने उनके पास जाकर पूछा-'परमेश्वर ! थोड़ी-सी तपस्यासे नमः' कहकर मस्तककी पूजा करे। 'वैकुण्ठाय नमः' मनुष्योंको मोक्षको प्राप्ति कैसे हो सकती है ?' ब्रह्माजीके इस मन्त्रसे कण्ठकी और 'श्रीवत्सबारिणे नमः' इससे
हृदयकी अर्चा करे। फिर 'शसिने नमः', 'चक्रिणे नमः', 'गदिने नमः', 'वरदाय नमः' तथा 'सर्व नारायणः' (सब कुछ नारायण ही है)-ऐसा कहकर आवाहन आदिके क्रमसे भगवानकी पूजा करे। इसके बाद 'दामोदराय नमः' कहकर उदरका, 'पञ्चजनाय नमः' इस मन्त्रसे कमरका, 'सौभाग्यनाथाय नमः' इससे दोनों जाँघोंका, 'भूतधारिणे नमः' से दोनों घुटनोंका, 'नीलाय नमः' इस मन्त्रसे पिंडलियों (घुटनेसे नीचेके भाग) का और 'विश्वसजे नमः' इससे पुनः दोनों चरणोंका पूजन करे। तत्पश्चात् 'देव्यै नमः', 'शान्त्यै नमः,' 'लक्ष्म्यै नमः', श्रियै नमः', 'तुष्टयै नमः', 'पुष्टयै नमः', 'व्युष्टयै नमः'-इन मन्त्रोंसे भगवती लक्ष्मीकी पूजा करे। इसके बाद 'वायुवेगाय नमः',
'पक्षिणे नमः,' 'विषप्रमथनाय नमः', 'विहङ्गनाथाय इस प्रकार प्रश्न करनेपर जगत्की उत्पत्ति एवं वृद्धि नमः'-इन मन्त्रोंके द्वारा गरुड़की पूजा करनी चाहिये। करनेवाले विश्वात्मा उमानाथ शिव मनको प्रिय लगने- इसी प्रकार गन्ध, पुष्प, धूप तथा नाना प्रकारके वाले वचन बोले।
पकवानोंद्वारा श्रीकृष्णकी, महादेवजीकी तथा महादेवजीने कहा-एक समय द्वारकाकी सभा गणेशजीकी भी पूजा करे। फिर गौके दूधकी बनी हुई अमिततेजस्वी भगवान् श्रीकृष्ण वृष्णिवंशी पुरुषों, खीर लेकर घीके साथ मौनपूर्वक भोजन करे । भोजनके विद्वानों, कौरवों और देव-गन्धर्वोके साथ बैठे हुए थे। अनन्तर विद्वान् पुरुष सौ पग चलकर बरगद अथवा धर्मसे सम्बन्ध रखनेवाली पौराणिक कथाएँ हो रही थीं। खैरेकी दाँतन ले उसके द्वारा दाँतोंको साफ करे; फिर मुँह इसी समय भीमसेनने भगवान्से परमपदकी प्राप्तिके घोकर आचमन करे। सूर्यास्त होनेके बाद उत्तराभिमुख विषयमें पूछा । उनका प्रश्न सुनकर भगवान् श्रीवासुदेवने बैठकर सायङ्कालकी सन्ध्या करे। उसके अन्तमें यह कहा-'भीम ! मैं तुम्हें एक पापविनाशिनी तिथिका कहे-'भगवान् श्रीनारायणको नमस्कार है। भगवन् !