________________
सृष्टिखण्ड ]
. आदित्य-शयन आदि व्रत, तडागकी प्रतिष्ठा और वृक्षारोपणकी विधि.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
कदापि नहीं करना चाहिये। शय्यादानके पश्चात् इस पुराणवेत्ता विद्वान् ही जानते है। इस लोकमें 'रोहिणीप्रकार प्रार्थना करे-'सूर्यदेव ! जिस प्रकार आपकी चन्द्र-शयन' नामक व्रत बड़ा ही उत्तम है। इसमें शय्या कान्ति, धृति, श्री और पुष्टिसे कभी सूनी नहीं चन्द्रमाके नामोंद्वारा भगवान् नारायणकी प्रतिमाका पूजन होती, वैसे ही मेरी भी वृद्धि हो। वेदोंके विद्वान् आपके करना चाहिये। जब कभी सोमवारके दिन पूर्णिमा तिथि सिवा और किसीको निष्पाप नहीं जानते, इसलिये आप हो अथवा पूर्णिमाको रोहिणी नक्षत्र हो, उस दिन मनुष्य सम्पूर्ण दुःखोंसे भरे हुए इस संसार-सागरसे मेरा उद्धार सबेरे पञ्चगव्य और सरसोंके दानोंसे युक्त जलसे स्नान कीजिये।' इसके पश्चात् भगवान्की प्रदक्षिणा करके उन्हें करे तथा विद्वान् पुरुष 'आप्यायस्वः' इत्यादि मन्त्रको प्रणाम करनेके अनन्तर विसर्जन करे। शय्या और गौ आठ सौ बार जपे। यदि शूद्र भी इस व्रतको करे तो आदिको ब्राह्मणके घर पहुंचा दे।
अत्यन्त भक्तिपूर्वक 'सोमाय नमः', 'वरदाय नमः', भगवान् शङ्करके इस व्रतकी चर्चा दुराचारी और "विष्णवे नम:'-इन मन्त्रोंका जप करे और दम्भी पुरुषके सामने नहीं करनी चाहिये । जो गौ, ब्राह्मण, पाखण्डियोंसे-विधर्मियोंसे बातचीत न करे। जप देवता, अतिथि और धार्मिक पुरुषोंकी विशेषरूपसे करनेके पश्चात् घर आकर फल-फूल आदिके द्वारा निन्दा करता है, उसके सामने भी इसको प्रकट न करे। भगवान् श्रीमधुसूदनकी पूजा करे। साथ ही चन्द्रमाके भगवानके भक्त और जितेन्द्रिय पुरुषके समक्ष ही यह नामोंका उच्चारण करता रहे। 'सोमाय शान्ताय नमः' आनन्ददायी एवं कल्याणमय गूढ़ रहस्य प्रकाशित कहकर भगवान्के चरणोंका, 'अनन्तधान्ने नमः'का करनेके योग्य है। वेदवेत्ता पुरुषोंका कहना है कि यह उच्चारण करके उनके घुटनों और पिंडलियोंका, व्रत महापातकी मनुष्योंके भी पापोंका नाश कर देता है। 'जलोदराय नमः' से दोनों जाँघोंका, 'कामसुखप्रदाय जो पुरुष इस व्रतका अनुष्ठान करता है, उसका बन्धु, नमः'से चन्द्रस्वरूप भगवानके कटिभागका, पुत्र, धन और स्त्रीसे कभी वियोग नहीं होता तथा वह 'अमृतोदराय नमः'से उदरका, 'शशाङ्काय नमः' से देवताओंका आनन्द बढ़ानेवाला माना जाता है। इसी नाभिका, 'चन्द्राय नमः'से मुखमण्डलका, प्रकार जो नारी भक्तिपूर्वक इस व्रतका पालन करती है, 'द्विजानामधिपाय नमः' से दाँतोंका, 'चन्द्रमसे नमः'से उसे कभी रोग, दुःख और मोहका शिकार नहीं होना मुँहका, 'कौमोदवनप्रियाय नमः'से ओठोंका, पड़ता। प्राचीन कालमें महर्षि वसिष्ठ, अर्जुन, कुबेर तथा 'वनौषधीनामधिनाथाय नमः'से नासिकाका, इन्द्रने इस व्रतका आचरण किया था। इस व्रतके 'आनन्दबीजाय नमः'से दोनों । भौहोका, कीर्तनमात्रसे सारे पाप नष्ट हो जाते हैं, इसमें तनिक भी 'इन्दीवरव्यासकराय नमः'से भगवान् श्रीकृष्णके सन्देह नहीं है। जो पुरुष इस आदित्यशयन नामक व्रतके कमल-सदृश नेत्रोंका, 'समस्तासुरवन्दिताय माहात्म्य एवं विधिका पाठ या श्रवण करता है, वह दैत्यनिषूदनाय नमः'से दोनों कानोंका, 'उदधिप्रियाय इन्द्रका प्रियतम होता है तथा जो इस व्रतका अनुष्ठान नमः'से चन्द्रमाके ललाटका, 'सुषुप्राधिपतये नमः'से करता है, वह नरकमें भी पड़े हुए समस्त पितरोंको केशोंका, 'शशाङ्काय नमः'से मस्तकका और स्वर्गलोकमें पहुँचा देता है।
"विश्वेश्वराय नमः'से भगवान् मुरारिके किरीटका पूजन भीष्मजीने कहा-मुने ! अब आप चन्द्रमाके करे। फिर 'रोहिणीनामधेयलक्ष्मीसौभाग्यसौख्यामृतव्रतका वर्णन कीजिये।
सागराय पाश्रिये नमः" (रोहिणी नाम धारण करनेपुलस्त्यजी बोले-राजन् ! तुमने बड़ी उत्तम वाली लक्ष्मीके सौभाग्य और सुखरूप अमृतके समुद्र बात पूछी है। अब मैं तुम्हें वह गोपनीय व्रत बतलाता तथा कमलकी-सी कान्तिवाले भगवान्को नमस्कार हैं, जो अक्षय स्वर्गकी प्राप्ति करानेवाला है तथा जिसे है)-इस मन्त्रका उच्चारण करके भगवान के सामने