________________
. अर्चयस्व हबीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[संक्षिप्त पद्मपुराण
द्वारा पुण्य नहीं हो सकता। एकमात्र हिंसा ही मेरी मेरा ग्रास नियत किया है, क्योंकि तू स्वयं यहाँ आकर जीवन-वृत्ति है, इसके द्वारा तो सदा दुःख ही प्राप्त होता है। उपस्थित हुई है।' व्याघ्रका यह रोंगटे खड़े कर देनेवाला किस प्रकार मृगीकी कही हुई बात सत्य हो सकती है?' निष्ठुर वचन सुनकर उस गायको चन्द्रमाके समान
जब व्याघ्रको उस वनमें रहते सौ वर्ष हो गये, तब कान्तिवाले अपने सुन्दर बछड़ेकी याद आने लगी। एक दिन वहाँ गौओंका एक बहुत बड़ा झुंड उपस्थित उसका गला भर आया-वह गद्गद स्वरसे पुत्रके लिये हुआ। वहाँ घास और जलकी विशेष सुविधा थी, वही हुङ्कार करने लगी। उस गौको अत्यन्त दुखी होकर गौओंके आनेमें कारण हुई। आते ही गौओंके विश्रामके क्रन्दन करते देख व्याघ्र बोला-'अरी गाय ! संसारमें लिये बाड़ लगा दी गयी। वालोंके रहनेके लिये भी सब लोग अपने कर्मोका ही फल भोगते हैं। तू स्वयं मेरे साधारण घर और स्थानकी व्यवस्था की गयी। पास आ पहुँची है, इससे जान पड़ता है तेरी मृत्यु आज गोचरभूमि तो वहाँ थी ही। सबका पड़ाव पड़ गया। ही नियत है। फिर व्यर्थ शोक क्यों करती है? अच्छा, वनके पासका स्थान गौओंके (भानेकी भारी आवाजसे यह तो बता-तू रोयी किसलिये?' गूंजने लगा। मतवाले गोप चारों ओरसे उस व्याघका प्रश्न सुनकर नन्दाने कहा-'व्याघ्र ! गो-समुदायकी रक्षा करते थे।
तुम्हें नमस्कार है, मेरा सारा अपराध क्षमा करो। मैं , गौओंके झुंडमें एक बहुत ही हृष्ट-पुष्ट तथा सन्तुष्ट जानती हूँ तुम्हारे पास आये हुए प्राणीकी रक्षा असम्भव रहनेवाली गाय थी, उसका नाम था नन्दा। वही उस है; अतः मैं अपने जीवनके लिये शोक नहीं करती। मृत्यु झुंडमें प्रधान थी तथा सबके आगे निर्भय होकर चला तो मेरी एक-न-एक दिन होगी ही [फिर उसके लिये करती थी। एक दिन वह अपने झुंडसे बिछुड़ गयी और क्या चिन्ता] । किन्तु मृगराज ! अभी नयी अवस्थामें मैंने चरते-चरते पूर्वोक्त व्याघ्रके सामने जा पहुंची। व्याघ्र उसे एक बछड़ेको जन्म दिया है। पहली बियानका बच्चा
होनेके कारण वह मुझे बहुत ही प्रिय है। मेरा बच्चा अभी दूध पीकर ही जीवन चलाता है। घासको तो वह सूंघता भी नहीं। इस समय वह गोष्ठमें बँधा है और भूखसे पीड़ित होकर मेरी राह देख रहा है। उसीके लिये मुझे बारम्बार शोक हो रहा है। मेरे न रहनेपर मेरा बच्चा कैसे जीवन धारण करेगा? मैं पुत्र-प्रेहके वशीभूत हो रही हूँ
और उसे दूध पिलाना चाहती हूँ। [मुझे थोड़ी देरके लिये जाने दो।] बछड़ेको पिलाकर प्यारसे उसका मस्तक चागी और उसे हिताहितकी जानकारीके लिये कुछ उपदेश करूँगी; फिर अपनी सखियोंकी देख-रेख में उसे सौंपकर तुम्हारे पास लौट आऊँगी। उसके बाद तुम इच्छानुसार मुझे खा जाना।'
नन्दाकी बात सुनकर व्याघने कहा-'अरी ! अब तुझे पुत्रसे क्या काम है?' नन्दा बोली-'मृगेन्द्र ! मैं
पहले-पहल बछड़ा व्यायी हूँ [अतः उसके प्रति मेरी देखते ही 'खड़ी रह, खड़ी रह' कहता हुआ उसकी ओर बड़ी ममता है, मुझे जाने दो] । सखियोंको, नन्हे बच्चेको, दौड़ा और निकट आकर बोला-'आज विधाताने तुझे रक्षा करनेवाले ग्वालों और गोपियोंको तथा विशेषतः