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सृष्टिखण्ड]
के प्रभावका वर्णन . • पुष्करका माहात्म्य, अगस्त्याश्रम तथा महर्षि अगस्त्य के प्रभावका वर्णन •
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नामसे प्रसिद्ध दानव रहते थे। उनका स्वभाव अत्यन्त पुलस्त्यजी कहते हैं-ब्रह्माजीके ऐसा कहनेपर कठोर था तथा वे युद्धके लिये सदा उन्मत्त रहते थे। एक समस्त देवता उनकी आज्ञा ले इन्द्रको आगे करके समय वे सभी दानव नाना प्रकारके अस्त्र-शस्त्रोंसे दधीचिके आश्रमपर गये। वह सरस्वती नदीके उस पार सुसज्जित हो वृत्रासुरको बीचमें करके इन्द्र आदि बना हुआ था। नाना प्रकारके वृक्ष और लताएँ उसे घेरे देवताओंपर चारों ओरसे चढ़ आये। तब देवतालोग हुए थीं। वहाँ पहुँचकर देवताओंने सूर्यके समान तेजस्वी इन्द्रको आगे करके ब्रह्माजीके पास गये। उन्हें हाथ महर्षि दधीचिका दर्शन किया और उनके चरणोंमें प्रणाम जोड़कर खड़े देख ब्रह्माजीने कहा-"देवताओ! करके ब्रह्माजीके कथनानुसार वरदान मांगा। तब तुमलोग जो कार्य करना चाहते हो, वह सब मुझे मालूम दधीचिने अत्यन्त प्रसन्न होकर देवताओंको प्रणाम करके है। मैं ऐसा उपाय बताऊँगा, जिससे तुम वृत्रासुरका वध यह कार्य-साधक वचन कहा-'अहो ! आज इन्द्र कर सकोगे। दधीचि नामके एक महर्षि हैं, उनकी बुद्धि आदि सम्पूर्ण देवता यहाँ किसलिये पधारे हैं ? मैं देखता बड़ी ही उदार है। तुम सब लोग एक साथ जाकर उनसे हूँ आप सब लोगोंकी कान्ति फीकी पड़ गयी है, वर माँगो । वे धर्मात्मा है, अतः प्रसन्नचित्त होकर तुम्हारी आपलोग पीड़ित जान पड़ते हैं। जिस कारणसे आपके माँग पूरी करेंगे। तुम उनसे यही कहना कि 'आप हृदयको कष्ट पहुँच रहा है, उसे शान्तिपूर्वक बताइये।' त्रिभुवनका हित करनेके लिये अपनी हड्डियाँ हमें प्रदान देवता बोले-महर्षे ! यदि आपकी हड्डियोंका करें।' निश्चय ही वे अपना शरीर त्यागकर तुम्हें हड्डियाँ शस्त्र बनाया जाय तो उससे देवताओंका दुःख दूर हो अर्पण कर देंगे। उनकी हडियोसे तुमलोग अत्यन्त भयंकर सकता है। एवं सुदृढ़ वज्र तैयार करो, जो दिव्य-शक्तिसे सम्पन्न उत्तम दधीचिने कहा-देवताओ! जिससे आपअस्त्र होगा। उससे बिजलीके समान गड़गड़ाहट पैदा लोगोंका हित होगा, वह कार्य में अवश्य करूँगा। होगी और वह महान्-से-महान् शत्रुका विनाश करनेवाला आज आपलोगोंके लिये मैं अपने इस शरीरका भी त्याग होगा। उसी वज्रसे इन्द्र वृत्रासुरका वध करेंगे।" करता हूँ।
ऐसा कहकर मनुष्योंमें श्रेष्ठ महर्षि दधीचिने सहसा अपने प्राणोंका परित्याग कर दिया। तब सम्पूर्ण देवताओंने आवश्यकताके अनुसार उनके शरीरसे हड्डियाँ निकाल ली। इससे उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई और वे विजय पानेके लिये विश्वकर्माके पास जाकर बोले-'आप इन हड्डियोंसे वनका निर्माण कीजिये।' देवताओंके वचन सुनकर विश्वकर्माने बड़े हर्षके साथ प्रयत्नपूर्वक उग्र शक्ति-सम्पन्न वज्रास्त्रका निर्माण किया और इन्द्रसे कहा-'देवेश्वर ! यह वज्र सब अस्त्रशस्त्रोमें श्रेष्ठ है, आप इसके द्वारा देवताओंके भयंकर शत्रु वृत्रासुरको भस्म कीजिये।' उनके ऐसा कहनेपर इन्द्रको बड़ी प्रसन्नता हुई और उन्होंने शुद्ध भावसे उस वज्रको ग्रहण किया।
तदनन्तर इन्द्र देवताओंसे सुरक्षित हो, वज्र हाथमें लिये, वृत्रासुरका सामना करनेके लिये गये, जो