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सृष्टिखण्ड]
• पुष्करका माहात्य, अगस्याश्रम तथा महर्षि अगस्त्यके प्रभावका वर्णन .
धारण करती है। वहाँसे कुछ ही दूर आगे जाकर यह सिद्ध पुरुषोंद्वारा भलीभाँति सेवित है। नन्दा तीर्थमे नान पुनः पश्चिम दिशाकी ओर मुड़ गयी है। वहाँसे करके यदि मनुष्य सुवर्ण और पृथ्वी आदिका दान करे सरस्वतीकी धारा प्रकट देखी जाती है। उसके तटोंपर तो वह महान् अभ्युदयकारी तथा अक्षय फल प्रदान अत्यन्त मनोहर तीर्थ और देवमन्दिर है, जो मुनियों और करनेवाला होता है।
पुष्करका माहात्म्य, अगस्त्याश्रम तथा महर्षि अगस्त्यके प्रभावका वर्णन भीष्मजीने कहा-ब्रह्मन् ! अब आप मुझे यह चारणोंका आगमन होता है, अतः उक्त तिथिको बतानेकी कृपा करें कि वेदवेता ब्राह्मण तीनों पुष्करोंकी देवताओं और पितरोंके पूजनमें प्रवृत्त हो मनुष्यको वहाँ यात्रा किस प्रकार करते हैं तथा उसके करनेसे मनुष्योंको स्नान करना चाहिये। इससे वह अभय पदको प्राप्त होता क्या फल मिलता है?
है और अपने कुलका भी उद्धार करता है। वहाँ पुलस्त्यजीने कहा-राजन् ! अब एकाग्रचित्त देवताओं और पितरोंका तर्पण करके मनुष्य विष्णुलोकमें होकर तीर्थ-सेवनके महान् फलका श्रवण करो। जिसके प्रतिष्ठित होता है। ज्येष्ठ पुष्करमें स्नान करनेसे उसका हाथ, पैर और मन संयममें रहते हैं तथा जो विद्वान्, स्वरूप चन्द्रमाके समान निर्मल हो जाता है तथा वह तपस्वी और कीर्तिमान होता है, वही तीर्थ-सेवनका फल ब्रह्मलोक एवं उत्तम गतिको प्राप्त होता है। मनुष्यप्राप्त करता है। जो प्रतिग्रहसे दूर रहता है-किसीका लोकमें देवाधिदेव ब्रह्माजीका यह पुष्कर नामसे प्रसिद्ध दिया हुआ दान नहीं लेता, प्रारब्धवश जो कुछ प्राप्त हो तीर्थ त्रिभुवनमें विख्यात है। यह बड़े-बड़े पातकोंका जाय-उसीसे सन्तुष्ट रहता है तथा जिसका अहङ्कार दूर नाश करनेवाला है। पुष्करमें तीनों सन्ध्याओंके हो गया है, ऐसे मनुष्यको ही तीर्थ-सेवनका पूरा फल समय-प्रातःकाल, मध्याह्न एवं सायंकालमें दस हजार मिलता है। राजेन्द्र ! जो स्वभावतः क्रोधहीन, सत्यवादी, करोड़ (एक खरब) तीर्थ उपस्थित रहते है तथा दृढ़तापूर्वक उत्तम व्रतका पालन करनेवाला तथा सम्पूर्ण आदित्य, वसु, रुद्र, साध्य, मरुद्गण, गन्धर्व और प्राणियोंमे आत्मभाव रखनेवाला है, उसे तीर्थ-सेवनका अप्सराओंका भी प्रतिदिन आगमन होता है। वहाँ तपस्या फल प्राप्त होता है।* यह ऋषियोंका परम गोपनीय करके कितने ही देवता, दैत्य तथा ब्रह्मर्षि दिव्य योगसे सिद्धान्त है।
सम्पन्न एवं महान् पुण्यशाली हो गये। जो मनसे भी राजेन्द्र ! पुष्कर तीर्थ करोड़ों ऋषियोंसे भरा है, पुष्कर तीर्थके सेवनकी इच्छा करता है, उस मनस्वीके उसकी लम्बाई ढाई योजन (दस कोस) और चौड़ाई सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। महाराज ! उस तीर्थमें देवता आधा योजन (दो कोस) है। यही उस तीर्थका परिमाण और दानवोंके द्वारा सम्मानित भगवान् ब्रह्माजी सदा ही है। वहाँ जानेमात्रसे मनुष्यको राजसूय और अश्वमेध प्रसन्नतापूर्वक निवास करते हैं। वहाँ देवताओं और यज्ञका फल प्राप्त होता है, जहाँ अत्यन्त पवित्र सरस्वती ऋषियोंने महान् पुण्यसे युक्त होकर इच्छानुसार सिद्धियाँ नदीने ज्येष्ठ पुष्करमें प्रवेश किया है, वहाँ चैत्र शुक्रा प्राप्त की हैं। जो मनुष्य देवताओं और पितरोंके पूजनमें चतुर्दशीको ब्रह्मा आदि देवताओं, ऋषियो, सिद्धों और तत्पर हो वहाँ स्नान करता है, उसके पुण्यको मनीषी
• यस्य हस्तौ च पादौ च मनचैव सुसयतम् । विद्या तपश्च कीर्तिध स तीर्थफलमश्रुते ।। प्रतिग्रहादुपावृतः संतुष्टो येन केनचित् । अहंकारनिवृत्तथ स तीर्थफलमश्रुते॥ अक्रोधनक्ष राजेन्द्र सत्यशीलो दृढव्रतः । आत्मोपमच भूतेषु स तीर्थफलमश्रुते॥
(१९।८-१०)