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• अर्चयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[संक्षिप्त पद्मपुराण ..................... ..... ... .............................. ...... ............ सविता वरुण, अंश, भग, इन्द्र, विवस्वान्, पूषा, त्वष्टा जिनका विग्रह है; उन भगवान्की हम शरण लेते हैं। जो और पर्जन्य-आदि बारहों आदित्य भी वहाँ उपस्थित भगवान् सम्पूर्ण भूतोंकी उत्पत्ति और वृद्धि करनेवाले हैं, हो अपने जाज्वल्यमान तेजसे प्रकाशित हो रहे थे। इन जो ऋषियों और लोकोंके स्रष्टा तथा देवताओंके ईश्वर हैं, देवेश्वरोंने भी पितामहको प्रणाम किया। मृगव्याध, शर्व, जिन्होंने देवताओंका प्रिय और समस्त जगत्का पालन महायशस्वी निर्गति, अजैकपाद, अहिर्बुध्य, पिनाकी, करनेके लिये चिरकालसे पितरोंको कव्य तथा अपराजित, विश्वेश्वर भव, कपर्दी, स्थाणु और भगवान् देवताओंको उत्तम हविष्य अर्पण करनेका नियम प्रवर्तित भग-ये म्यारह रुद्र भी उस यज्ञमें उपस्थित थे। दोनों किया है, उन देवश्रेष्ठ परमेश्वरको हम सादर प्रणाम अश्विनीकुमार, आठों वसु, महाबली मरुद्गण, विश्वेदेव करते हैं। और साध्य नामक देवता ब्रह्माजीके सम्मुख हाथ तदनन्तर वृद्ध एवं बुद्धिमान् देवता भगवान् जोड़कर खड़े थे। शेषजीके वंशज वासुकि आदि बड़े- श्रीब्रह्माजी यज्ञशालामें लोकपालक श्रीविष्णुभगवान्के बड़े नाग भी विद्यमान थे। तार्थ्य, अरिष्टनेमि, महाबली साथ बैठकर शोभा पाने लगे। वह यज्ञमण्डप धन आदि गरुड़, वारुणि तथा आरुणि-ये सभी विनताकुमार वहाँ सामग्रियों और ऋत्विजोंसे भरा था। परम प्रभावशाली पधारे थे। लोकपालक भगवान् श्रीनारायणने वहाँ स्वयं भगवान् श्रीविष्णु धनुष हाथमें लेकर सब ओरसे उसकी पदार्पण किया और समस्त महर्षियोंके साथ लोकगुरु रक्षा कर रहे थे। दैत्य और दानवोंके सरदार तथा ब्रह्माजीसे कहा-'जगत्पते ! तुम्हारे ही द्वारा इस सम्पूर्ण राक्षसोंके समुदाय भी वहाँ उपस्थित थे। यज्ञ-विद्या, संसारका विस्तार हुआ है, तुम्हीने इसकी सृष्टि की है। वेद-विद्या तथा पद और क्रमका ज्ञान रखनेवाले इसलिये तुम सम्पूर्ण लोकोंके ईश्वर हो । यहाँ हमलोगोंके महर्षियोंके वेद-घोषसे सारी सभा गूंज उठी। यज्ञमें करनेयोग्य जो तुम्हारा महान् कार्य हो, उसे करनेकी हमें स्तुति-कर्मके जानकार, शिक्षाके ज्ञाता, शब्दोंकी व्युत्पत्ति आज्ञा दो।' देवर्षियोंके साथ भगवान् श्रीविष्णुने ऐसा एवं अर्थका ज्ञान रखनेवाले और मीमांसाके युक्तियुक्त कहकर देवेश्वर ब्रह्माजीको नमस्कार किया। वाक्योंको समझनेवाले विद्वानोंके उच्चारण किये हुए शब्द
ब्रह्माजी वहाँ स्थित होकर सम्पूर्ण दिशाओंको सबको सुनायी देने लगे। इतिहास और पुराणोंके ज्ञाता, अपने तेजसे प्रकाशित कर रहे थे तथा भगवान् श्रीविष्णु नाना प्रकारके विज्ञानको जानते हुए भी मौन रहनेवाले, भी श्रीवत्स-चिह्नसे सुशोभित एवं सुन्दर सुवर्णमय संयमी तथा उत्तम व्रतोंका पालन करनेवाले विद्वानोंने यज्ञोपवीतसे देदीप्यमान हो रहे थे। उनका एक-एक रोम वहाँ उपस्थित होकर जप और होममें लगे हुए परम पवित्र है। वे सर्वसमर्थ हैं, उनका वक्षःस्थल मुख्य-मुख्य ब्राह्मणोंको देखा । देवता और असुरोंके गुरु विशाल तथा श्रीविग्रह सम्पूर्ण तेजोंका पुञ्ज जान पड़ता लोक-पितामह ब्रह्माजी उस यज्ञभूमिमें विराजमान थे। है। [देवताओं और ऋषियोंने उनकी इस प्रकार स्तुति सुर और असुर दोनों ही उनकी सेवामें खड़े थे। की-] जो पुण्यात्माओंको उत्तम गति और पापियोंको प्रजापतिगण-दक्ष, वसिष्ठ, पुलह, मरीचि, अङ्गिरा, दुर्गति प्रदान करनेवाले हैं; योगसिद्ध महात्मा पुरुष जिन्हें भृगु, अत्रि, गौतम तथा नारद-ये सब लोग वहाँ उत्तम योगस्वरूप मानते हैं; जिनको अणिमा आदि आठ भगवान् ब्रह्माजीकी उपासना करते थे। आकाश, वायु, ऐश्वर्य नित्य प्राप्त हैं; जिन्हें देवताओंमें सबसे श्रेष्ठ कहा तेज, जल, पृथ्वी, शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध, जाता है; मोक्षकी अभिलाषा रखनेवाले संयमी ब्राह्मण ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, व्याकरण, योगसे अपने अन्तःकरणको शुद्ध करके जिन सनातन छन्दःशास्त्र, निरुक्त, कल्प, शिक्षा, आयुर्वेद, धनुर्वेद, पुरुषको पाकर जन्म-मरणके बन्धनसे मुक्त हो जाते हैं; मीमांसा, गणित, गजविद्या, अश्वविद्या और इतिहासचन्द्रमा और सूर्य जिनके नेत्र हैं तथा अनन्त आकाश इन सभी अङ्गोपाङ्गोंसे विभूषित सम्पूर्ण वेद भी मूर्तिमान