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• अर्चयस्व हवीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[संक्षिप्त परापुराण m
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पृथुके चरित्र तथा सूर्यवंशका वर्णन भीष्पजीने पूछा-ब्रह्मन् ! सुना जाता है, है?' पृथुने कहा-'सुव्रते ! सम्पूर्ण चराचर जगत्के पूर्वकालमें बहुत-से राजा इस पृथ्वीका उपभोग कर चुके लिये जो अभीष्ट वस्तु है, उसे शीघ्र प्रस्तुत करो।' हैं। पृथ्वीके सम्बन्धसे ही राजाओंको पार्थिव या पृथ्वीने 'बहुत अच्छा' कहकर स्वीकृति दे दी। तब पृथ्वीपति कहते हैं। परन्तु इस भूमिकी जो 'पृथ्वी' संज्ञा राजाने स्वायम्भुव मनुको बछड़ा बनाकर अपने हाथमें है, वह किसके सम्बन्धसे हुई है? भूमिको यह पृथ्वीका दूध दुहा । वही दूध अन्न हुआ, जिससे सारी पारिभाषिक संज्ञा किसलिये दी गयी अथवा उसका 'गौ' प्रजा जीवन धारण करती है। तत्पश्चात् ऋषियोंने भी नाम भी क्यों पड़ा, यह मुझे बताइये।
भूमिरूपिणी गौका दोहन किया। उस समय चन्द्रमा ही पुलस्त्यजीने कहा-स्वायम्भुव मनुके वंशमें एक बछड़ा बने थे। दुहनेवाले थे वनस्पति, दुग्धका पात्र था अङ्ग नामके प्रजापति थे। उन्होंने मृत्युकी कन्या वेद और तपस्या ही दूध थी। फिर देवताओंने भी सुनीथाके साथ विवाह किया था। सुनीथाका मुख बड़ा वसुधाको दुहा । उस समय मित्र देवता दोग्धा हुए. इन्द्र कुरूप था। उससे वेन नामक पुत्र हुआ, जो सदा बछड़ा बने तथा ओज और बल ही दूधके रूपमें प्रकट अधर्ममें ही लगा रहता था। वह लोगोंकी बुराई करता हुआ। देवताओंका दोहनपात्र सुवर्णका था और और परायी स्त्रियोंको हड़प लेता था। एक दिन पितरोंका चाँदीका । पितरोंकी ओरसे अन्तकने दुहनेका महर्षियोंने उसकी भलाई और जगत्के उपकारके लिये काम किया, यमराज बछड़ा बने और स्वधा ही दूधके उसे बहुत कुछ समझाया-बुझाया; परन्तु उसका रूपमें प्राप्त हुई। नागोंने तूंबीको पात्र बनाया और अन्तःकरण अशुद्ध होनेके कारण उसने उनकी बात नहीं तक्षकको बछड़ा। धृतराष्ट्र नामक नागने दोग्धा बनकर मानी, प्रजाको अभयदान नहीं दिया। तब ऋषियोंने शाप विषरूपी दुग्धका दोहन किया। असुरोंने लोहेके बर्तनमें देकर उसे मार डाला। फिर अराजकताके भयसे पीड़ित इस पृथ्वीसे मायारूप दूध दुहा । उस समय प्रह्मदकुमार होकर पापरहित ब्राह्मणोंने वेनके शरीरका बलपूर्वक विरोचन बछड़ा बने थे और त्रिमूर्धाने दुहनेका काम मन्थन किया। मन्थन करनेपर उसके शरीरसे पहले किया था। यक्ष अन्तर्धान होनेकी विद्या प्राप्त करना म्लेच्छ जातियाँ उत्पन्न हुई, जिनका रङ्ग काले अञ्जनके चाहते थे; इसलिये उन्होंने कुबेरको बछड़ा बनाकर कचे समान था। तत्पश्चात् उसके दाहिने हाथसे एक दिव्य बर्तनमें उस अन्तर्धान-विद्याको ही वसुधासे दुग्धके तेजोमय शरीरधारी धर्मात्मा पुरुषका प्रादुर्भाव हुआ, जो रूपमें दुहा। गन्धवों और अप्सराओंने चित्ररथको बछड़ा धनुष , बाण और गदा धारण किये हुए थे तथा रत्नमय बनाकर कमलके पत्ते में पृथ्वीसे सुगन्धोंका दोहन किया। कवच एवं अङ्गदादि आभूषणोंसे विभूषित थे। वे पृथुके उनकी ओरसे अथर्ववेदके पारगामी विद्वान् सुरुचिने दूध नामसे प्रसिद्ध हुए। उनके रूपमें साक्षात् भगवान् विष्णु दुहनेका कार्य किया था। इस प्रकार दूसरे लोगोंने भी ही अवतीर्ण हुए थे। ब्राह्मणोंने उन्हें राज्यपर अभिषिक्त अपनी-अपनी रुचिके अनुसार पृथ्वीसे आयु, धन और किया। राजा होनेपर उन्होंने देखा कि इस भूतलसे धर्म सुखका दोहन किया। पृथुके शासन-कालमें कोई भी उठ गया है। न कहीं स्वाध्याय होता है, न वषट्कार मनुष्य न दरिद्ध था न रोगी, न निर्धन था न पापी तथा (यज्ञादि)। तब वे क्रोध करके अपने बाणसे पृथ्वीको न कोई उपद्रव था न पीडा । सब सदा प्रसन्न रहते थे। विदीर्ण कर डालनेके लिये उद्यत हो गये। यह देख पृथ्वी किसीको दुःख या शोक नहीं था। महाबली पृथुने गौका रूप धारण करके भाग खड़ी हुई। उसे भागते देख लोगोंके हितकी इच्छासे अपने धनुषकी नोकसे बड़े-बड़े पृथुने भी उसका पीछा किया। तब वह एक स्थानपर पर्वतोंको उखाड़कर हटा दिया और पृथ्वीको समतल खड़ी होकर बोली-'राजन् ! मेरे लिये क्या आज्ञा होती बनाया। पृथुके राज्यमें गाँव बसाने या किले बनवानेकी