________________
४०
SOUPSMS.
अर्चयस्व इषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् •
वेत्रकी था। उसके गर्भ से सत्त्वगुणसम्पन्न सात्वतकी उत्पत्ति हुई। जो सात्वतवंशकी कीर्तिका विस्तार करनेवाले थे। सत्त्वगुणसम्पन्न सात्वतसे उनकी रानी कौसल्याने भजिन, भजमान, दिव्य राजा देवावृध, अन्धक, महाभोज और वृष्णि नामके पुत्रोंको उत्पन्न किया। इनसे चार वंशोंका विस्तार हुआ। उनका वर्णन सुनो। भजमानकी पत्नी सृञ्जयकुमारी सृञ्जयीके गर्भसे भाज नामक पुत्रकी उत्पत्ति हुई। भाजसे भाजकोंका जन्म हुआ। भाजकी दो स्त्रियाँ थीं। उन दोनोंने बहुत से पुत्र उत्पन्न किये। उनके नाम हैं—विनय, करुण और वृष्णि । इनमें वृष्णि शत्रुके नगरोंपर विजय पानेवाले थे। भाज और उनके पुत्र – सभी भाजक नामसे प्रसिद्ध हुए क्योंकि भजमानसे इनकी उत्पत्ति हुई थी।
देवावृधसे बभ्रु नामक पुत्रका जन्म हुआ, जो सभी उत्तम गुणोंसे सम्पन्न था। पुराणोंके ज्ञाता विद्वान् पुरुष महात्मा देवावृधके गुणोंका बखान करते हुए इस वंशके विषयमें इस प्रकार अपना उद्वार प्रकट करते हैं— 'देवावृध देवताओंके समान हैं और बभ्रु समस्त मनुष्योंमें श्रेष्ठ हैं। देवावृध और बभ्रुके उपदेशसे छिहत्तर हजार मनुष्य मोक्षको प्राप्त हो चुके हैं।' बभ्रुसे भोजका जन्म हुआ, जो यज्ञ, दान और तपस्यामें धीर, ब्राह्मणभक्त, उत्तम व्रतोंका दृढ़तापूर्वक पालन करनेवाले, रूपवान् तथा महातेजस्वी थे। शरकान्तकी कन्या मृतकावती भोजकी पत्नी हुई। उसने भोजसे कुकुर, भजमान, समीक और बलबर्हिष—ये चार पुत्र उत्पन्न किये। कुकुरके पुत्र धृष्णु, धृष्णुके धृति, धृतिके कपोतरोमा, कपोतरोमाके नैमित्ति, नैमित्तिके सुसुत और सुसुतके पुत्र नरि हुए। नरि बड़े विद्वान् थे। उनका दूसरा नाम चन्दनोदक दुन्दुभि बतलाया जाता है। उनसे अभिजित् और अभिजित्से पुनर्वसु नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। शत्रुविजयी पुनर्वसुसे दो सन्तानें हुई; एक पुत्र और एक कन्या । पुत्रका नाम आहुक था और कन्याका आहुकी। भोजवंशमें कोई असत्यवादी, तेजहीन, यज्ञ न करनेवाला, हजारसे कम दान करनेवाला, अपवित्र और मूर्ख नहीं था। भोजसे बढ़कर कोई हुआ ही नहीं। यह
[ संक्षिप्त पद्मपुराण
भोजवंश आहुकतक आकर समाप्त हो गया।
आहुकने अपनी बहिन आहुकीका ब्याह अवन्ती देशमें किया था। आहुककी एक पुत्री भी थी, जिसने दो पुत्र उत्पन्न किये। उनके नाम है— देवक और उग्रसेन । वे दोनों देवकुमारोंके समान तेजस्वी हैं। देवकके चार पुत्र हुए, जो देवताओंके समान सुन्दर और वीर हैं। उनके नाम हैं— देववान्, उपदेव, सुदेव और देवरक्षक उनके सात बहिनें थीं, जिनका ब्याह देवकने वसुदेवजीके साथ कर दिया। उन सातोंके नाम इस प्रकार हैं— देवकी, श्रुतदेवा, यशोदा, श्रुतिश्रवा, श्रीदेवा, उपदेवा और सुरूपा। उग्रसेनके नौ पुत्र हुए। उनमें कंस सबसे बड़ा था। शेषके नाम इस प्रकार है— न्यग्रोध, सुनामा, कङ्क, शङ्कु, सुभू, राष्ट्रपाल, बद्धमुष्टि और सुमुष्टिक। उनके पाँच बहिनें थीं— कंसा, कंसवती, सुरभी, राष्ट्रपाली और कङ्का । ये सब की सब बड़ी सुन्दरी थीं। इस प्रकार सन्तानोंसहित उग्रसेनतक कुकुर- वंशका वर्णन किया गया।
[भोजके दूसरे पुत्र ] भजमानके विदूरथ हुआ, वह रथियोंमें प्रधान था। उसके दो पुत्र हुए- राजाधिदेव और शूर। राजाधिदेवके भी दो पुत्र हुए- शोणाश्व और श्वेतवाहन वे दोनों वीर पुरुषोंके सम्माननीय और क्षत्रिय धर्मका पालन करनेवाले थे। शोणाश्वके पाँच पुत्र हुए। वे सभी शूरवीर और युद्धकर्ममें कुशल थे। उनके नाम इस प्रकार हैं— शमी, गदचर्मा, निमूर्त, चक्रजित् और शुचि। शमीके पुत्र प्रतिक्षत्र, प्रतिक्षत्रके भोज और भोजके हृदिक हुए। हृदिकके दस पुत्र हुए, जो भयानक पराक्रम दिखानेवाले थे। उनमें कृतवर्मा सबसे बड़ा था । उससे छोटोंके नाम शतधन्वा, देवार्ह, सुभानु, भीषण, महाबल, अजात, विजात, कारक और करम्भक हैं। देवार्हका पुत्र कम्बलबर्हिष हुआ, वह विद्वान् पुरुष था । उसके दो पुत्र हुए- समौजा और असमौजा अजातके पुत्रसे भी समौजा नामके दो पुत्र उत्पन्न हुए। समौजाके तीन पुत्र हुए, जो परम धार्मिक और पराक्रमी थे। उनके नाम है- सुदृश, सुरांश और कृष्ण ।
[ सात्वतके कनिष्ठ पुत्र] वृष्णिके वंशमें अनमित्र