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. अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[संक्षिप्त पयपुराण
पहुँचा देते हैं। अतः यह भेंट-पूजा आदिके रूपमें करता है, वह धर्मात्मा पुरुष भगवान् श्रीनारायणके दिया हुआ सब सामान प्राणियोंके पास पहुँचकर उन्हें धाममें जाता है। कोकामुख नामक क्षेत्र भी एक प्रधान तृप्त करता है। यदि शुभ कमकि योगसे पिता और माता तीर्थ है। यह इन्द्रलोकका मार्ग है। यहाँ भी ब्रह्माजीके दिव्ययोनिको प्राप्त हुए हों तो श्राद्धमें दिया हुआ अन्न पितृतीर्थका दर्शन होता है। वहाँ भगवान् ब्रह्माजी अमृत होकर उस अवस्थामें भी उन्हें प्राप्त होता है। वही पुष्करारण्यमें विराजमान हैं। ब्रह्माजीका दर्शन अत्यन्त दैत्ययोनिमें भोगरूपसे, पशुयोनिमें तृणरूपसे, सर्पयोनिमें उत्तम एवं मोक्षरूप फल प्रदान करनेवाला है। कृत वायुरूपसे तथा यक्षयोनिमें पानरूपसे उपस्थित होता है। नामक महान् पुण्यमय तीर्थ सब पापोंका नाशक है। इसी प्रकार यदि माता-पिता मनुष्य-योनिमें हों तो उन्हें वहाँ आदिपुरुष नरसिंहस्वरूप भगवान् जनार्दन स्वयं ही अन्न-पान आदि अनेक रूपोंमे श्राद्धान्नकी प्राप्ति होती है। स्थित है। इक्षुमती नामक तीर्थ पितरोंको सदा प्रिय है। यह श्राद्ध कर्म पुष्प कहा गया है, इसका फल है ब्रह्मकी गङ्गा और यमुनाके सङ्गम (प्रयाग) में भी पितर सदा प्राप्ति । राजन् ! श्राद्धसे प्रसन्न हुए पितर आयु, पुत्र, धन, सन्तुष्ट रहते हैं। कुरुक्षेत्र अत्यन्त पुण्यमय तीर्थ है। विद्या, राज्य, लौकिक सुख, स्वर्ग तथा मोक्ष भी प्रदान वहाँका पितृ-तीर्थ सम्पूर्ण अभीष्ट फलोंको देनेवाला है। करते है।
राजन् ! नीलकण्ठ नामसे विख्यात तीर्थ भी भीष्मजीने पूछा-ब्रह्मन् ! श्राद्धकर्ता पुरुष पितरोंका तीर्थ है। इसी प्रकार परम पवित्र भद्रसर तीर्थ, दिनके किस भागमें श्राद्धका अनुष्ठान करे तथा किन मानसरोवर, मन्दाकिनी, अच्छोदा, विपाशा (व्यास तीर्थोंमें किया हुआ श्राद्ध अधिक फल देनेवाला नदी), पुण्यसलिला सरस्वती, सर्वमित्रपद, महाफलहोता है?
दायक वैद्यनाथ, अत्यन्त पावन क्षिप्रा नदी, कालिञ्जर पुलस्त्यजी बोले-राजन् ! पुष्कर नामका तीर्थ गिरि, तीर्थोद्वेद, हरोद्भेद, गर्भभेद, महालय, भद्रेश्वर, सब तीर्थोंमें श्रेष्ठतम माना गया है। वहाँ किया हुआ विष्णुपद, नर्मदाद्वार तथा गयातीर्थ-ये सब पितृतीर्थ दान, होम, [श्राद्ध] और जप निश्चय ही अक्षय फल हैं। महर्षियोंका कथन है कि इन तीर्थोंमें पिण्डदान प्रदान करनेवाला होता है। वह तीर्थ पितरों और करनेसे समान फलकी प्राप्ति होती है। ये स्मरण करने ऋषियोंको सदा ही परम प्रिय है। इसके सिवा नन्दा, मात्रसे लोगोंके सारे पाप हर लेते हैं; फिर जो इनमें ललिता तथा मायापुरी (हरिद्वार) भी पुष्करके ही समान पिण्डदान करते हैं, उनकी तो बात ही क्या है। ओङ्कारउत्तम तीर्थ हैं। मित्रपद और केदार-तीर्थ भी श्रेष्ठ हैं। तीर्थ, कावेरी नदी, कपिलाका जल, चण्डवेगा नदीमें गङ्गासागर नामक तीर्थको परम शुभदायक और मिली हुई नदियोंके सङ्गम तथा अमरकण्टक-ये सब सर्वतीर्थमय बतलाया जाता है। ब्रह्मसर तीर्थ और शतदु पितृतीर्थ हैं। अमरकण्टकमें किये हुए स्नान आदि पुण्य(सतलज) नदीका जल भी शुभ है। नैमिषारण्य नामक कार्य कुरुक्षेत्रको अपेक्षा दसगुना उत्तम फल देनेवाले तीर्थ तो सब तीर्थोका फल देनेवाला है। वहाँ गोमतीमें है। विख्यात शुफ़तीर्थ एवं उत्तम सोमेश्वरतीर्थ अत्यन्त गङ्गाका सनातन स्रोत प्रकट हुआ है। नैमिषारण्यमें पवित्र और सम्पूर्ण व्याधियोंको हरनेवाले हैं। वहाँ श्राद्ध भगवान् यज्ञ-वराह और देवाधिदेव शूलपाणि विराजते करने, दान देने तथा होम, स्वाध्याय, जप और निवास है। जहाँ सोनेका दान दिया जाता है, वहाँ महादेवजीकी करनेसे अन्य तीर्थोकी अपेक्षा कोटिगुना अधिक फल अठारह भुजावाली मूर्ति है। पूर्वकालमें जहाँ धर्मचक्रकी होता है। नेमि जीर्ण-शीर्ण होकर गिरी थी, वही स्थान इनके अतिरिक्त एक कायावरोहण नामक तीर्थ है, नैमिषारण्यके नामसे प्रसिद्ध हुआ। वहाँ सब तीर्थोका जहाँ किसी ब्राह्मणके उत्तम भवनमें देवाधिदेव निवास है। जो वहाँ जाकर देवाधिदेव वराहका दर्शन त्रिशूलधारी भगवान् शङ्करका तेजस्वी अवतार हुआ था।