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पष्टिखण्ड]
• एकोद्दिष्ट आदि श्राद्धोंकी विधि तथा श्राद्धोपयोगी तीर्थोका वर्णन •
इसीलिये वह स्थान परम पुण्यमय तीर्थ बन गया। नामधेयतीर्थ, सौमित्रिसङ्गमतीर्थ, इन्द्रनील, महानाद तथा चर्मण्वती नदी, शूलतापी, पयोष्णी, पयोष्णी-सङ्गम, प्रियमेलक-ये भी श्राद्धके लिये अत्यन्त उत्तम माने महौषधी, चारणा, नागतीर्थप्रवर्तिनी, पुण्यसलिला गये हैं। इनमें सम्पूर्ण देवताओंका निवास बताया जाता महावेणा नदी, महाशाल तीर्थ, गोमती, वरुणा, है। इन सबमें दिया हुआ दान कीटिगुना अधिक फल अग्नितीर्थ, भैरवतीर्थ, भृगुतीर्थ, गौरीतीर्थ, वैनायकतीर्थ, देनेवाला होता है। पावन नदी बाहुदा, शुभकारी, वस्त्रेश्वरतीर्थ, पापहरतीर्थ, पावनसलिला वेत्रवती सिद्धवट, पाशुपततीर्थ, पर्यटिका नदी-इन सबमें (बेतवा) नदी, महारुद्रतीर्थ, महालिङ्गतीर्थ, दशार्णा, किया हुआ श्राद्ध भी सौ करोड़ गुना फल देता है। इसी महानदी, शतरुद्रा, शताह्वा, पितृपदपुर, अङ्गारवाहिका प्रकार पञ्चतीर्थ और गोदावरी नदी भी पवित्र तीर्थ हैं। नदी, शोण (सोन) और घर्घर (घाघरा) नामवाले दो गोदावरी दक्षिण-वाहिनी नदी है। उसके तटपर हजारों नद, परमपावन कालिका नदी और शुभदायिनी पितरा शिवलिङ्ग हैं। वहीं जामदग्न्यतीर्थ और उत्तम नदी-ये समस्त पितृतीर्थ स्नान और दानके लिये उत्तम मोदायतनतीर्थ हैं, जहाँ गोदावरी नदी प्रतीकके भयसे माने गये है। इन तीर्थोमें जो पिण्ड आदि दिया जाता है, सदा प्रवाहित होती रहती हैं। इसके सिवा हव्य-कव्य वह अनन्त फल देनेवाला माना गया है। शतवटा नदी, नामका तीर्थ भी है। वहाँ किये हुए श्राद्ध. होम और दान ज्वाला, शरद्वी नदी, श्रीकृष्णतीर्थ-द्वारकापुरी, सौ करोड़ गुना अधिक फल देनेवाले होते हैं, उदक्सरस्वती, मालवती नदी, गिरिकर्णिका, दक्षिण- सहस्रलिङ्ग और राघवेश्वर नामक तीर्थका माहात्म्य भी समुद्रके तटपर विद्यमान भूतपापतीर्थ, गोकर्णतीर्थ, ऐसा ही है। वहाँ किया हुआ श्राद्ध अनन्तगुना फल देता गजकर्णतीर्थ, परम उत्तम चक्रनदी, श्रीशैल, शाकतीर्थ, है। शालग्रामतीर्थ, प्रसिद्ध शोणपात (सोनपत) तीर्थ, नारसिंहतीर्थ, महेन्द्र पर्वत तथा पावनसलिला वैश्वानराशयतीर्थ, सारस्वततीर्थ, स्वामितीर्थ, मलंदरा महानदी-इन सब तीर्थोंमें किया हुआ श्राद्ध भी सदा नदी, पुण्यसलिला कौशिकी, चन्द्रका, विदर्भा, वेगा, अक्षय फल प्रदान करनेवाला माना गया है। ये प्राङ्मुखा, कावेरी, उत्तराङ्गा और जालन्धर गिरि-इन दर्शनमात्रसे पुण्य उत्पन्न करनेवाले तथा तत्काल समस्त तीर्थोंमें किया हुआ श्राद्ध अक्षय हो जाता है। पापोंको हर लेनेवाले हैं।
लोहदण्डतीर्थ, चित्रकूट, सभी स्थानोंमें गङ्गानदीके दिव्य पुण्यमयी तुङ्गभद्रा, चक्ररथी, भीमेश्वरतीर्थ, एवं कल्याणमय तट, कुब्जाम्रक, उर्वशी-पुलिन, कृष्णवेणा, कावेरी, अञ्जना, पावनसलिला गोदावरी, संसारमोचन और ऋणमोचनतीर्थ-इनमें किया हुआ उत्तम त्रिसन्ध्यातीर्थ और समस्त तीर्थोसे नमस्कृत श्राद्ध अनन्त हो जाता है। अट्टहासतीर्थ, गौतमेश्वरतीर्थ, त्र्यम्बकतीर्थ, जहाँ 'भीम' नामसे प्रसिद्ध भगवान् शङ्कर वसिष्ठतीर्थ, भारततीर्थ-ब्रह्मावर्त, कुशावर्त, हंसतीर्थ, स्वयं विराजमान हैं, अत्यन्त उत्तम हैं। इन सबमें दिया प्रसिद्ध पिण्डारकतीर्थ, शङ्खोद्धारतीर्थ, भाण्डेश्वरतीर्थ, हुआ दान कोटिगुना अधिक फल देनेवाला है। इनके बिल्वकतीर्थ, नीलपर्वत, सब तीर्थोंका राजाधिराज स्मरण करनेमात्रसे पापोंके सैकड़ों टुकड़े हो जाते हैं। बदरीतीर्थ, वसुधारातीर्थ, रामतीर्थ, जयन्ती, विजय तथा परम पावन श्रीपर्णा नदी, अत्यन्त उत्तम व्यास-तीर्थ, शुक्लतीर्थ-इनमें पिण्डदान करनेवाले पुरुष परम पदको मत्स्यनदी, राका, शिवधारा, विख्यात भवतीर्थ, सनातन प्राप्त होते हैं। पुण्यतीर्थ, पुण्यमय रामेश्वरतीर्थ, वेणायु, अमलपुर, मातृगृहतीर्थ, करवीरपुर तथा सब तीर्थोका स्वामी प्रसिद्ध मङ्गलतीर्थ, आत्मदर्शतीर्थ, अलम्बुषतीर्थ, सप्तगोदावरी नामक तीर्थ भी अत्यन्त पावन है। जिन्हें वत्सवातेश्वरतीर्थ, गोकामुखतीर्थ, गोवर्धन, हरिश्चन्द्र, अनन्त फल प्राप्त करनेकी इच्छा हो, उन पुरुषोंको इन पुरश्चन्द्र, पृथूदक, सहस्राक्ष, हिरण्याक्ष, कदली नदी, तीर्थोंमें पिण्डदान करना चाहिये। मगध देशमें गया