Book Title: Sankshipta Padma Puran
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 16
________________ १६ • अर्चयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [ संक्षिप्त पद्मपुराण हुए हैं। भगवान् शिवमें जितने गुण हैं, उनका पूर्णतया दी। उनमें विनायक-सम्बन्धी प्रह, भूत, प्रेत तथा वर्णन करनेमें ब्रह्माजीकी जिह्वा भी समर्थ नहीं है। वे ही पिशाच-सब थे। यज्ञमण्डपमें पहुँचकर उन्होंने सब सबके धाता (धारण करनेवाले) और विधाता देवताओंको परास्त किया और उन्हें भगाकर उस यज्ञको (नियामक) हैं। वे ही दिशाओंके पालक है। भगवान् तहस-नहस कर डाला । यज्ञ नष्ट हो जानेसे दक्षका सारा रुद्रके प्रसादसे ही इन्द्रको स्वर्गका आधिपत्य प्राप्त हुआ उत्साह जाता रहा। वे उद्योगशून्य होकर देवाधिदेव है। यदि रुद्रमें देवत्व है, यदि वे सर्वत्र व्यापक और पिनाकधारी भगवान् शिवके पास डरते-डरते गये और कल्याणस्वरूप हैं, तो इस सत्यके प्रभावसे शङ्करजी इस प्रकार बोले-'देव ! मैं आपके प्रभावको नहीं आपके यज्ञका विध्वंस कर डालें। ___ जानता था; आप देवताओंके प्रभु और ईश्वर है। इस इतना कहकर सती योगस्थ हो गयीं-उन्होंने जगत्के अधीश्वर भी आप ही हैं; आपने सम्पूर्ण ध्यान लगाया और अपने ही शरीरसे प्रकट हुई अग्निके देवताओंको जीत लिया। महेश्वर ! अब मुझपर कृपा कीजिये और अपने सब गणोंको लौटाइये।' दक्ष प्रजापतिने भगवान् शङ्करकी शरणमें जाकर जब इस प्रकार उनकी स्तुति और आराधना की, तब भगवान्ने कहा-'प्रजापते ! मैंने तुम्हें यज्ञका पूरा-पूरा फल दे दिया। तुम अपनी सम्पूर्ण कामनाओकी सिद्धिके लिये यज्ञका उत्तम फल प्राप्त करोगे।' भगवान्के ऐसा कहनेपर दक्षने उन्हें प्रणाम किया और सब गणोंके देखतेदेखते वे अपने निवास स्थानको चले गये। उस समय भगवान् शिव अपनी पत्नीके वियोगसे गङ्गाद्वारमें ही जाकर रहने लगे। 'हाय ! मेरी प्रिया कहाँ चली गयी।' इस प्रकार कहते हुए वे सदा सतीके चिन्तनमें लगे रहते थे। तदनन्तर एक दिन देवर्षि नारद महादेवजीके समीप आये और इस प्रकार बोले- 'देवेश्वर ! आपकी पली सती देवी, जो आपको प्राणोंके समान प्रिय थीं, देहत्यागके पश्चात् इस समय हिमवान्की कन्या होकर द्वारा अपनेको भस्म कर दिया। उस समय देवता, असुर, प्रकट हुई हैं। मेनाके गर्भसे उनका आविर्भाव हुआ है। नाग, गन्धर्व और गुहाक 'यह क्या ! यह क्या !' कहते वे लोकके तात्त्विक अर्थको जाननेवाली थीं। उन्होंने इस ही रह गये; किन्तु क्रोध भरी हुई सतीने गङ्गाके तटपर समय दूसरा शरीर धारण किया है।' अपने देहका त्याग कर दिया। गङ्गाजीके पश्चिमी तटपर नारदजीकी बात सुनकर महादेवजीने ध्यानस्थ हो वह स्थान आज भी 'सौनक तीर्थ' के नामसे प्रसिद्ध है। देखा कि सती अवतार ले चुकी हैं। इससे उन्होंने भगवान् रुद्रने जब यह समाचार सुना, तब अपनी अपनेको कृत-कृत्य माना और स्वस्थचित्त होकर रहने पत्नीकी मृत्युसे उन्हें बड़ा दुःख हुआ और उनके मनमें लगे। फिर जब पार्वतीदेवी यौवनावस्थाको प्राप्त हुई, तब समस्त देवताओंके देखते-देखते उस यज्ञको नष्ट कर शिवजीने पुनः उनके साथ विवाह किया। भीष्म ! डालनेका विचार उत्पन्न हुआ। फिर तो उन्होंने पूर्वकालमें जिस प्रकार दक्षका यज्ञ नष्ट हुआ था, उसका दक्षयज्ञका विनाश करनेके लिये करोड़ों गणोंको आज्ञा इस रूपमें मैंने तुमसे वर्णन किया है।

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