Book Title: Sankshipta Padma Puran Author(s): Unknown Publisher: Unknown View full book textPage 7
________________ सृष्टिखण्ड] • ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान, वराहद्वारा पृथ्वीका वार, ब्रह्माजीके सगोंका वर्णन . बीचका जो समय है, उसीको युग समझना चाहिये। वही पुरुष आँचसे सन्तप्त होकर जनलोकमें चले जाते हैं। सत्ययुग और त्रेता आदिके नामसे प्रसिद्ध है। सत्ययुग, दिनके बराबर ही अपनी रात बीत जानेपर ब्रह्माजी पुनः त्रेता, द्वापर और कलियुग-ये सब मिलकर चतुर्युग संसारकी सृष्टि करते हैं। इस प्रकार [पक्ष, मास आदिके कहलाते हैं। ऐसे एक हजार चतुर्युगोंको ब्रह्माका एक क्रमसे धरि-धीर] ब्रह्माजीका एक वर्ष व्यतीत होता है दिन कहा जाता है।* तथा इसी क्रमसे उनके सौ वर्ष भी पूरे हो जाते हैं। सौ राजन् ! ब्रह्माके एक दिनमें चौदह मनु होते हैं। वर्ष ही उन महात्माकी पूरी आयु है। उनके समयका परिमाण सुनो । सप्तर्षि, देवता, इन्द्र, मनु भीष्मजीने कहा-महामुने ! कल्पके आदिमें और मनुके पुत्र-ये एक ही समयमें उत्पन्न होते हैं तथा नारायणसंशक भगवान् ब्रह्माने जिस प्रकार सम्पूर्ण अन्तमें साथ-ही-साथ इनका संहार भी होता है। भूतोंकी सृष्टि की, उसका आप वर्णन कीजिये। इकहत्तर चतुर्युगसे कुछ अधिक कालका एक मन्वन्तर पुलस्त्यजीने कहा-राजन् ! सबकी उत्पत्तिके होता है। यही मनु और देवताओं आदिका समय है। कारण और अनादि भगवान् ब्रह्माजीने जिस प्रकार इस प्रकार दिव्य वर्षगणनाके अनुसार आठ लाख, प्रजावर्गकी सृष्टि की, वह बताता हूँ सुनो । जब पिछले बावन हजार वर्षाका एक मन्वन्तर होता है। महामते! कल्पका अन्त हुआ, उस समय रात्रिमें सोकर उठनेपर मानव-वर्षोंसे गणना करनेपर मन्वन्तरका कालमान पूरे सत्त्वगुणके उद्रेकसे युक्त प्रभु ब्रह्माजीने देखा कि सम्पूर्ण तीस करोड़, सरसठ लाख, बीस हजार वर्ष होता है। लोक सूना हो रहा है। तब उन्होंने यह जानकर कि पृथ्वी इससे अधिक नहीं। इस कालको चौदह गुना करनेपर एकार्णवके जलमें डूब गयी है और इस समय पानीके ब्रह्माके एक दिनका मान होता है। उसके अन्तमें भीतर ही स्थित है, उसको निकालनेकी इच्छासे कुछ नैमित्तिक नामवाला ब्राह्म-प्रलय होता है। उस समय देरतक विचार किया। फिर वे यज्ञमय वाराहका स्वरूप भूलोक, भुवर्लोक और स्वलोक-सम्पूर्ण त्रिलोकी दग्ध धारणकर जलके भीतर प्रविष्ट हुए। भगवान्को होने लगती है और महलोंकमें निवास करनेवाले पाताललोकमें आया देख पृथ्वीदेवी भक्तिसे विनम्र हो • युगों तथा ब्रह्माके दिनकी वर्ष-संख्या इस प्रकार समझनी चाहिये । सत्ययुगका मान चार हजार दिव्य वर्ष है, उसके आरम्भमें चार सौ वर्षोंकी सन्ध्या और अन्तमें चार सौ वर्षोंका सन्ध्यांश होता है। इस प्रकार सन्ध्या और सन्ध्याशसहित सत्ययुगकी अवधि चार हजार आठ सौ (४८००) दिव्य वर्षोंकी है। इसी तरह त्रेताका युगमान ३००० दिव्य वर्ष, सन्ध्या-मान ३०० वर्ष और सध्यांशमान ३०० वर्ष है; अतः उसकी पूरी अवधि ३६०० दिव्य वाँकी हुई। द्वापरका युगमान २००० वर्ष, सन्ध्या-मान २०० वर्ष और सन्ध्यांश-मान २०० वर्ष है; अतः उसका मान २४००दिव्य वर्षाका हुआ। कलियुगका युगमान १००० वर्ष, सन्ध्या-मान १०० व और सन्ध्यांश-मान १०० वर्ष है; इसलिये उसकी आयु १२०० दिव्य वर्षोंकी हुई। देवताओंका वर्ष मानव-वर्षसे ३६० गुना अधिक होता है। अतः मानव-वर्षके अनुसार कलियुगकी आयु ४,३२,००० वर्षोंकी, द्वापरकी ८,६४,००० वोंकी, त्रेताको १२,९६,००० वोंकी तथा सत्ययुगकी आय १७.२८,००० वर्षोंकी है। इनका कुल योग ४३,२०,००० वर्ष हुआ। यह एक चतुर्युगका मान है। ऐसे एक हजार चतुर्युगोंका अर्थात् हमारे ४,३२,००,००,००० (चार अरब बत्तीस करोड़) वर्षाका ब्रह्माका एक दिन होता है। ब्रह्माजीके एक दिनमें चौदह मन्वन्तर होते हैं; इकहत्तर चतुर्युगोंके हिसाबसे चौदह मन्वन्तरोंमें ९९४ चतुर्युग होते है। परन्तु ब्रह्माका दिन एक हजार चतुर्युगोंका माना गया है। अतः छः चतुर्युग और बचे। छः चतुर्युगका चौदहवाँ भाग कुछ कम पाँच हजार एक सौ तीन दिव्य वयोंका होता है। इस प्रकार एक मन्वन्तरमें इकहत्तर चतुर्युगके अतिरिक्त इतने दिव्य वर्ष और अधिक होते हैं। यह वर्ष-संख्या पूरे इकहत्तर चतुर्युगोंका मन्वन्तर मानकर निकाली गयी है; इस हिसाबसे ब्रह्माजीके दिनका मान ४,२९,४०,८०,००० (चार अरब, उनतीस करोड़, चालीस लाख, अस्सी हजार) मानव-वर्ष होता है। परन्तु पहले अता आये है कि इकहत्तर चतुर्युगसे कुछ अधिक कालका मन्वन्तर होता है। वह अधिक काल है-छ: चतुर्युगका चौदहवाँ भाग । उसको भी जोड़ लेनेपर मन्वन्तरका काल ऊपर दी हुई संख्यासे अधिक होगा और उस हिसाबसे ब्रह्माजीका दिनमान चार अरब, बत्तीस करोड़ वर्षाका ही होगा।Page Navigation
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