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में शिखर की आकृति वर्तुलाकार हो गई और द्रविड़ शैली में विमान शिखर का ऊपरी भाग पिरामिड की तरह ऊँचा होता चला गया।
प्राचीनतम जैन मन्दिर लोहानीपुर (पटना) में रहा है। इसके बाद सातवीं शती के ओसिया समूह के जैन मन्दिरों का उल्लेख किया जा सकता है। पश्चिम भारत में चालुक्य शैली के मन्दिर अधिक लोकप्रिय हुए, जिनके गर्भगृह, गूढ़मण्डप और मुखमण्डप एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। उत्तरकाल में वे अलंकृत होने लगे। आबू का विमलवसहरी मन्दिर ऐसा ही मन्दिर है। चित्तौड़गढ़ का कीर्तिस्तम्भ मध्यकालीन जैन स्थापत्य का एक सुन्दर नमूना है। जैसलमेर के दुर्गमन्दिर, बीकानेर, जयपुर, नागदा, कोटा, आगरा आदि स्थानों के जैन मन्दिर उल्लेखनीय हैं। यहाँ चतुर्मुखी और सर्वतोभद्रशैली का प्रयोग किया गया है। रणकपुर मन्दिर इस शैली का विशेष उदाहरण है।
मध्यमहाभारत का कुण्डलपुर, देवगढ़ और ग्यारसपुर के मन्दिर समूह की अलंकृत शैली दर्शनीय है। खजुराहो और घण्टाई मन्दिर भी अलंकृत शैली के मन्दिर हैं। मालवा का ऊन मन्दिर परमार शैली का उदाहरण है। ग्वालियर, सोनागिरि, रेशन्दीगिरि, द्रोणगिरि, चंदेरी, माण्हू, नरवर, बीना बारहा आदि स्थानों में भी इस काल की स्थापत्यकला के दर्शन होते हैं।
उत्तर भारत की जैनकला पर 12वीं शती के आसपास मुस्लिम आक्रमण बहुत हुए। फलत: बहुत से जैन मन्दिर या तो नष्ट कर दिये गये या परिवर्तित कर दिये गये।
अजमेर की मस्जिद, अढाई दिन का झोपड़ा, आमेर के तीन शिव मन्दिर, सांगानेर का सिंघीजी का मन्दिर, दिल्ली का कुब्बतुल इस्लाम मस्जिद आदि स्थान मूलत: जैन मन्दिर हैं। वैदिक सम्प्रदाय ने भी जैन मन्दिरों का खूब विनाश किया और उन्हें अपने मन्दिरों में परिवर्तित कर लिया। ऐसे लगभग तीन हजार जैन मन्दिर हैं, जो वैदिकों या मुसलिम समाज के अधिकार में है। अयोध्या की विवादग्रस्त मस्जिद भी मूलतः जैन मन्दिर रही है।
चौदहवीं शती के नये मन्दिरों का निर्माण रुक-सा गया। जो बने भी उनमें मुगल शैली का प्रभाव अधिक रहा। इस प्रभाव को हम दाँतेदार तोरणों, अरब शैली के अलंकरणों और शाहजहाँ के स्तम्भों में देख सकते हैं।
दक्षिण-क्षेत्र-वर्ती श्रीलंका में बौद्धधर्म पहुँचने के पूर्व वहाँ जैनधर्म का अस्तित्व था, ऐसा महावंश आदि पालि ग्रन्थों से ही पता चलता है। अत: लगता है कि महावीर के पूर्व दक्षिण में जैनधर्म काफी लोकप्रिय रहा होगा। भले ही पुरातत्व अभी इसे सिद्ध नहीं कर पा रहा हो, परन्तु परम्परा को भी पूरी तरह से झुठलाया नहीं जा सकता।
आरम्भिक कालीन जैन मन्दिर दक्षिण भारत में प्राप्त नहीं होते। वहाँ सातवीं शती से निर्माण हुआ है शैलोत्कीर्ण मन्दिरों का। सर्वाधिक प्राचीन जैन गुफा मन्दिर तिरुनेलबोली जिले में मलैयडिक्कुरिच्च स्थान पर है, जिसे बाद में शिव मन्दिर में परिवर्तित कर
78 :: जैनधर्म परिचय
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