Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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शब्दार्थ + { भगवन् ए० ऐसा बु० कहा जाता है ना० जितने यावत् णो० नहीं ख० खपाते हैं गो० गौतम से० अथ ज० जैसे के० कोई पु० पुरुष जु० जीर्ण ज० वृद्धावस्था से ज० जर्जरतदे हवाला सि० शिथिल व वाले त० तरंग सं० छिद्रवाले गा० गात्र प० बिखरी हुई प० पडी हुई दं०दांतश्रेणी उ० उष्णाभिहत २० तृषा से अ० पराभूत आ० आतुर झुं० खेदित पि० तृषा पि० तृषातुर दु० दुर्बल कि० का हुवा ए० एक म० बडा को० कसुंबे वृक्ष ( खाखरा ) गं० खण्ड सु० शुष्क ज० जटावाला गं० गांगे वाला चि० चीकना केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ जावइयं अण्णगिलायए समणे णिग्गंथे कम्मं णिजरेइ एवइयं कम्मं णरएसु णेरड्या वासेणवा वासेहिंवा, वाससएणवा णोखवयंति, जावइयं उत्थभत्तिए एवं तंत्र पुव्वभणियं उच्चारेयव्वं जाव वासकोडाकोडीए वा णो खत्रयंति ? गोयमा ! से जहा णामए केइ पुरिसे जुण्णे जराजजरिय देहे सिढिलतया वलितरंगसंपिणगत्ते पत्रिरलपरिसडिय दंतसेढी उष्हाभिहए तण्हाभिहए आतुरे नहीं है || ५ || अहो भगवन् ! किस कारन से ऐसा कहा गया है कि अन्नविना ग्लानी उत्पन्न होवे | वैसे श्रमण निर्ग्रथ जितने कर्मों को क्षय करे उतने कर्मों नरक में रहे हुवे नारकी एक वर्ष में, प्रत्येक वर्ष में अथवा सो वर्ष में नहीं क्षय करते हैं वैसे ही एक उपवास करते हुवे श्रमण निग्रंथ जितने कर्मों की निर्जरा करे उतने कर्मों की निर्जरा नरक में रहे हुवे नारकी सो वर्ष में, प्रत्येक सो वर्ष अथवा सहस्र वर्ष में नद्द किर
सूत्र
भावार्थ
4 अनुवादक बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
- प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसाजीदे *
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