Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ
* पंचमाङ्ग विवाह पण्णति ( भगवती) सूत्र
* षडविंशतितम् शतकम्
णाण,
अण्णाण,
• णमो सुअदेवयाए भगवईए ॥ जीवाय, लेस्स, पक्खिय, दिट्ठी,
सण्णाओ वेय, कसाय, जोग, उवओगे; एक्कारसविट्ठाणे ॥ १ ॥ तेणं कालेणं तेणं समणं यरि जावं एवं वयासी-जीवेणं 'भंते! पावकम्मं किं बंधीबंधइ बंधीस्सइ बंधी बंध बंधिस्सइ २, बंधी णबंधइ, बंधिस्सइ ३ बंधीण बंधइ णबंधिस्सइ ? गोयमा !
भगवती श्रुत देवता को नमस्कार होवो. चनीस शतक के अंत में नरकादि जीवोंकी उत्पत्ति कही. { जीवों कर्मबन्धवाले होते हैं इस लिये इस शतक में कर्म बन्ध का विचार करते हैं. ( उद्देशे कहे हैं. १ समुच्चय जीव का २ लेश्या का ३ पाक्षिक ४ दृष्टि ५ ज्ञान ६ अज्ञान
१९ कषाय १० योग और ११ उपयोग. उस काल उस समय में राजगृही नामक नगरी के गुणशील श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को भगवान् गौतम स्वामी ऐसा बोले अहो भगवन् ! अतीत
उद्यान
{ काल में जीवोंने पामकर्म का क्या बंध कीया, वर्तमान में क्या बंध करते हैं, या आगामि काल में क्या (बंध करेगा अथवा बंध किया, बंध करता है या बंध नहीं करेगा, बंध कीया, बंध नहीं करता है या बंध | करेगा अथवा बंध कीया बंध नहीं करता है व बंध नहीं करेगा ! अहो गौतम ! कितनेक जीवोंने पापकर्म
इस में अग्यारह
७ संज्ञा ८ वेद
+ छन्नीसना शतक का पहिला उद्देशा 488+
२९०३