Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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02 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक प्रपिजी
आयाहिणं' पयाहिणं करेत्ता वंदइणधंसह वंदित्ता णमंसित्ता एवं चयासी-एवमेयं भंते!: । तहमेयं भंते ! आवे तहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छि. यमेयं भंते ! इच्छिय पडिच्छियमेयं भंते ! सच्चेणं एसमटे जेणं तुब्भे वदह तिकटु अपूर्ववयणाहिं खलु अरहंता भगवंतो समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ वंदित्ता
णमंसित्ता संयमणं तवसा अप्पाणं भात्रमाणे विहरइ॥ रासीजुम्म सयं सम्मत्तं ॥४१॥ वंदना नमस्कार करके ऐसा बोले. अहो भगवन् ! जो आप कहने हैं वैसे ही है, सथ्य है, अवितथ्य है, असंदिग्ध है, इच्छित है, प्रतिच्छित है, इच्छिन प्रतिच्छित है, यों अपूर्व वचनों अरिहंत भगवंत के हैं यों कहकर श्रीश्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर संयम व तप से आत्मा को भावते हुवे विचरने लगे. यह राशियुग्म नामक एकतालीसवा शतक संपूर्ण हुवा ॥ ४१ ॥ +
प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसाद जी -
भावार्थ