Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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छछ उद्देसगा, बंधि सयाई अदुसयाई एगेणंदिवसेणं सठिसयाई, वारसएगेण एगिदिय महाजुम्म सयाई, बारसएगेणं, एवं वेइंदियाणं बारस, तेइंदियाणं वारस, चउरिदियाणं वार सएगेण. असण्णि पंचिंदियाणं वारस, सण्णि पंचिंदिय महाजम्म सयाई एकवीसं एगदिवसेणं उदिसिजति, रासीजम्म सयं एगीदवसेणं उद्दिसिज्जति ॥ १ ॥ गाहात्रियसिय अरिविंदकरा, नासिय तिमिरासुयाहिवा देवी । मझंपि देउमेहं वुहविवहणमं
सियाणिचं ॥ १ ॥ सयदेवयाए पणमिमो, जिएपसाएण सिक्खियं णाणं ॥ अण्णं एक दिन में जितना कहा जाये उतना. कहना. उत्कृष्ट एक दिन में एक शतक, मध्यम दो दिन में और
जघन्य तीन दिन में एक शतक कहना. यों बीस शतक पर्यन्त कहना. परंतु गोशाला का शतक एक ही भावार्थ दिन में कहना. यह भी एक आयंबिल तप करके उद्देशा कहना. बाकी रह जाय तो दूसरे दिन आयंबिल
तप करके पूर्ण कहना. इक्कीसवा, बावीसवा व तेवीसवा शतक एक २ दिन में पूर्ण करना. चौवीसवा शतक के छ २ उद्देशे कहकर दो दिन में पूर्ण कहना, पच्चीसवा शतक दो दिन में छ २ उद्देशे कहकर
पूर्ण करना. बंधी के आठ शतक एक दिनमें कहना,साठ शतकके बारह २ उद्देशे एकदिनमें,एकेन्द्रिय महायुग्म ॐ चारह शतक एकदिनमें, ऐसेही वेइन्द्रियके बारह शतक एकदिनमें,तेइन्द्रियके बारह शतक एक दिनमें,चतुरेन्द्रिय
के बारह शतक एक दिन में, असंज्ञी पंचेन्द्रिय के बारह शतक एक दिन में, संझी पंचेन्द्रिय महायुग्म शकत
488+ पंचमांग विवाह पणत्ति ( भगवती) मूत्र 488
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