Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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दट
अनुवादक बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
पण्णत्तीए आविमागं अट्टहं सयाणं दो दो उदिसिझंति, णवरं चउत्थसए पढमदिवसे अट्र वितिय दिवसे, दो उसगा उद्दिसिझंति, नवमाओ सताओ आरद्धं जावइयं जाव पवेइ तावइयं एमदिवसेणं उद्दिसिझंति, उक्कोमेणं मतंपि एगदिवसेणं, मज्झिमेणं दोहिं सतं जहणणं तिहि दिवस हि मतं, एवं जाव वीसइमं सयं, णवरं गोसालो एग दिवसेणं उद्विझिंति ॥ जदिठिओ एगेणचव आयविलेण अणुतच्चइ, अहणं ठितो आयंबिलेण छट्रेण अणण्णवति एकवीस-बावी र तेवीस-इमाई-सताई एकोक दिवसेणं
उदिसिझंति चचीस सयं दोहिं दिवसहि छछ उद्देसगा, पंचविसझ्यं दोहि दिवसेहिं तप अभिग्रह विशप नियम और अभ्युत्थानादिक विनया रूप लावाला. सदैव ज्ञान रूए विमल विस्तीर्ण जलबाला, असाधने के संकड़ों तुओं रूप विपन गराला, गांभीर्यादिगणावाला संघ रूप सम विजयवंत होवो. ॥२यांचमान भगानी सत्र संपूर्ण हवा.गोजमा गगको नमस्कार दोषो.भगवती विवाह पज्ञानको सकार होतो. दारद अंगके पाठक गणिधर आचार्यको नसम्मारहावो. ॥ * कूर्म जैसे बुरस्थित चरणोंवाले. और अनमीलन कार के विट समान भगवतो भन देवता मंग मनिका निमिर नाशक ग.||१|अत्र भगाती सत्रको पद की विधि करते हैं:-प्रज्ञात भगवान के पधिले के शतक दो२ उद्देश एककदिनमें कहना.परंतु इनना रिशंष कि चतुर्थ शतक पहिले दिन आठ उद्देशे और दुमरेदि दो उद्देशे कहना. नववे शतकसे लगाकर
प्रकाशक राजावहादुर लाला मुन्वदवमहायनी ज्वालाप्रमादानी *
স্বার্থ