Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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Nag+ पंचमांगविवाह पण्णति ( भगवती ) सूत्र
सिद्धिय सरिसा अट्ठावीस उद्देसगा कायव्वा, सेवं भंते ! २ त्ति ॥४१॥ १६८ ॥ सुक्कपक्खिय रासीजुम्मा कडजुम्म णेरइयाणं भंते ! कओ उववजंति ? एवं एत्थवि। भवसिद्रिय सरिसा अट्ठावीसं उद्देसगा. भवति ॥ एवं एएणं सव्वेवि छण्णउयं उद्देसगं सायं. भवंति ॥ रासीजुम्म सयं सम्मत्तं ॥ ४१ ॥ १९६ ॥
॥ जाव। सुकलेस्स सुकपक्खिय रासीजुम्म कलिओग वेमाणिय. आव जइ सकिरिया तेणव. भवग्गहणेणं सिझंति जाव अंतकरेंति ? णो इण? समटे । सेवं भंते.! भंतेत्ति ॥ १
भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेंति, तिक्खुत्तो उद्देशे कहना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं ॥ ४१ ॥ १६८ ॥ ४ ॥ शुक्लः पक्षिक सशियुग्म कृतयुग्म नारकी कहां से उत्पन्न होवे ?. यों यहां पर भी भवसिद्धिक जैसे अठावीस उद्देशे कहना. यों सबब
मीलकर एक सो छन्नु उद्देशे होते हैं. यह राशियुग्म शतक संपूर्ण हुका ॥४१॥ १९६ ॥ यावत् शुक्ल Aलेश्या शुक्ल पक्षिक राशियुग्म कृतयुग्म कल्योज वैमानिक याक्त् यदि सक्रिय होवे तो उसीभवमें सीझे यावत् + 20 अंत करे ? अहो गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् वैसे नहीं है. अहो भगवन् ! आपके बचन सत्य हैं. १० का श्रमण भगवंतः महावीर स्वामी को भगवान गौतम स्वामी तीन-वक्त हस्तद्वय जोडकरप्रदक्षिणावत फिराक ।
एकतालीसवा शतक का ११६ उद्देशे 4887