Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
भाव
49 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
बंधी बंधइ बंधिस्तइ, अत्थेगइए बंधी बंधइ णबंधिस्मइ, अत्थेगइए बंधी गबंधइ जबंधिस्सइ ॥ सलेसेवि एवं चव, ततियविहणा भंगा ॥ कण्हलेस जाव पम्हलेस्से पढमवितिया भंगा, सक्कलेस्ने ततिय विणा भंगा । अलेस्से चरिमो भंगो ॥ कण्णपविखए पढमवितिए ; सुक्कपक्खिया ततिथविहगा ॥ एवं सम्मदिद्विस्त मिच्छादिहिस्स सम्ममिच्छादिष्टिरस पढमवितिया ॥ णाणिस्स ततियविहुणा, आभिणिबोहियणाणी
जाव मणपज्जवणाणी पढमवितिया; केवलणाणी ततियविहुणा ॥ एवं णोसण्णांब उत्ते कर्म का क्या बंध कीया, बंध करते हैं या बंध करेंगे वगैरह पृच्छा? अहो गौतम ! कितनेकने बंध कीया, कितनेक बंध करते हैं व कितनेक बंध करेंगे, अभव्यजीव आश्री.कितनेकने बंध कीया,कितनेक बंध करेत हैं. कितनेक बंध नहीं करेंगे.मध्य जीव आश्री.और कितनेकने बंध कीया,कितनेक बंध नहीं करते हैं व कितनेक वंध नहीं करेंगे. अयोगी आश्री. यहां पर पहिला दूसरा व चौथा ऐमे तीन भांगे पाते हैं. फक्त यहां तीसरा, भांगा नहीं पाता है, क्यों कि वेदनीय अपंधक हुए पीछे बंधक नहीं होता है. मलेशी व शुक्ल लेशी में तीसरा भाग छोडकर तीन मांगे. और कृष्णलेशी से यावत् पद्म लेश्यानक पहिला व दूसरा ऐसे दो भांगे. अलेशी में एक अन्तिम भांगा. कृष्ण पक्षी में पहिला दूसरा, शुक्ल पक्षी में तीसरा छोडकर तीन भांगे. ऐसे ही समदृष्टि में तीन भांगे, मिश्यादृष्टि व सममिथ्यादृष्टि में पहिला दूसरा भांगे, ज्ञानी में तीसरा छोडकर तीन
मकाशक-राजाबडादुर लाला मुखदवसहाय ज्वाला प्रसादजी*