Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
पंचांग विवाह पण्यति ( भगवती ) सूत्र
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जीवा जं समयं दावरजुम्मा तं समयं कडजुम्मा, जं समयं कडजुम्मा तं समयं दावर: - जुम्मा ? णो इणट्टे समट्टे ॥ एवं तेओएणवि समं, एवं कलिओत्रि समं, सेसं जहा पढमुद्देसए जाव वेमाणिया ॥ सेवं भंते ! भंतेत्ति ॥ ४१ ॥ ३ ॥ रासम्म कलिओंग पेरइयाणं भंते ! कओ उबवजंति ? एवं चैत्र नवरं परिमाणं एक्कोवा पंचवा नववा तेरसवा संखेजावा असंखेज्जावा उवबजंति, संवेहो ॥ तेणं भंते ! जीवा जं समयं कलिओगा तं समयं कडजम्मा जं समयं कडजुम्मा तं समयं कलिओगा ? णो. इणट्ठे समट्टे ॥ एवं तेआंगेणविसमं, दावरजुम्माणत्रिसम,
पहिले जैसा उद्देशा कहना, परंतु परिमाण दो, छ, दश, संख्यात व असख्यात उत्पन्न होते हैं, बैसा कहना. अहो. (भगवन! वे जीवों जिस समय में द्वापरयुग्म होवे उस समय में क्या कृतयुग्म होते हैं और जिस समयमें कृतयुग्म {होते हैं उस समय में क्या द्वापरयुग्म होते हैं? अहो गौतमः ऐसा नहीं होता है. यों व्याज व कल्यो की साथ कहना.. शेष वैमानिक पर्यन्त पहिला उद्देशा जैसे कहना. अहो भगवन्! आपके वजन सत्य हैं ॥। ४१ ।। ३ ।। राशियुग्म कल्योज {नारकी कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? ऐसे ही कहना. परंतु परिमाण एक, पांच, नव, तेरह संख्यात व असंख्यात उत्पन्न होते हैं. वैसा कहना. अहो भगवन् ! वे जीवों जिस समय में कल्योज उस समय में क्या. कृतयुग्म हैं और जिस समय में कृतयुग्म उस समय में क्या कल्पोज हैं ? अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य
एकतालीसवा शतक का चौथा उद्देशा 28
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