Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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14. : अस्थि तेसु भाणियत्वं, एवं एएवि कण्हलेस्स सरिसा चात्तरि उद्देसग्गा कायव्वा ॥ . + सेवं भंते ! २ त्ति ॥ ११ ॥ २० ॥ + .. ॥ एवं पम्हलेस्साएवि
चत्तारि उद्देसगा कायव्वा, पंचिंदिय तिरिक्खजोणिया मणस्स्सा वैमाणियाणं एएसि पम्हलेस्सा, सेसाणं णस्थि ॥ सेवं भंते २ त्ति ॥ ४१ ॥ २४ ॥ .
जहा पम्हलेस्सा एवं सुक्कलेस्साए चत्तारि उद्देसगा कायचा णवरं मणुस्साणं गमओ, है. जहा ओहिय उद्देसएसु, सेसं तंचेव, एए छसु लेरसासु चउब्बीसं उद्देसगा, ओहिया
चत्तारि, सवते अट्ठावीसं उद्देसगा भवंति ॥ सवं भंते रत्ति ॥ ११ ॥ २८ ॥ भावार्थ ऐसे ही कहना. परंतु जिन में तेजो लेश्या होवे वहां हो कहना. यो इम के भी कृष्ण लेश्या जैसे चार
उद्देशे कहना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं ॥ ४२ ॥ २० ॥ * ॥ ऐसे ही पद्म लेश्या की साथ चार उद्देशे कहना, तिर्यंच पंचेन्द्रिय, मनुष्य व वैमानिक इन को ही पद्म लेश्या है. शेष किसी को नहीं है. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं ॥ ४१ ॥ २४ ॥
॥ जैसे एय लेश्यां का कहा वैसे ही शुक्ल लेश्या के चार उद्देशे कहना. परंतु मनुष्य का गमा औषिक जैसे कहना. शेष वैसे ही यों छ लेश्या के चौवीस और औधिक के चार यो सब मीलकर अठावीस उद्देशे हुवे ॥४१॥२८॥
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
प्रकाशक रानाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी :