Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सेसं जहा पढमुद्देसए ॥ एवं जाव वेमाणिया ॥ सेवं भंते २ ति ॥४॥॥ + कण्हलेरस रासीजुम्म कडजुम्म जरइयाणं भंते ! कओ उबवज्जति?, उववाओ जहा. धूम्मप्पभाए, सेस जहा पढमुद्देसए ॥ असुरकुमाराणं तहेव एवं जाप वाणमंतराणं ॥ मणुसाणवि जहेव रइयाणं, आय अजसं उवजीवंति, अलेस्सा, अकिरिया, तेणेव । भवग्गहणेणं सिझंति एवं भाणियन्वं, सेसं जहा पढमुद्देसए ॥ सेवं भंते ! २ त्ति ॥४१॥५॥ . कण्हलेस्स तेयोएहिवि एवं चेव उद्देसओ ॥ सेवं भंते २ त्ति
॥ ४ ॥६॥ x कण्हलेस्स दायरजुम्मे हिवि ? एवं चेव उद्देसओ ॥ भावार्थ महीं है, यों ज्योज व द्वापर युग्म की साथ भी कहना. शेष पहिले उदेशे जैसे कहना ॥४१॥४॥ Eष्ण लेण्यावाले राशियुग्म कृतयुग्म नारकी कहां से उत्पन्न होते हैं ? उपपात धूम्रप्रभा जैसे कहना. शेष
पहिला उद्देशा जैसे कहना. अमुरकुमार का वैसे ही ऐसे ही वाणव्यंतर पर्यन्त कहना. मनुष्य का नारकी जैसे. असंयम से उपजीविका करते हैं, अलेशी आक्रय व उसी भव में सीझे बुझे. यावत् अंत करे. ये
कहना. शेष पहिला उद्देशा जैसे कहना. अहोभगवन् ! आपके वचन सत्य हैं ॥४१॥५॥ + का कृष्ण लेण्या श्योज की साथ भी वैसे ही उद्देशा कहना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं.
मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी ।
.प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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