Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ |
4 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
या, असंखेजात्रा उववर्जति संतरं तहेब || तेणं भंते ! जीवा जे समयं तओंगा त समय कडजुम्मा जं समय कडजुम्मा तं समय तेओगा ? गोयमा! णो इणट्टे समट्ठे जं 'समय तेओगा तं समयं दात्ररजुम्मा, जं समयं दावरजुम्मा तं समयं तेओया ? गोयमा ! णो इणट्ठे समट्टे ॥ १ ॥ एवं कलिआंगणवि, समं सेसं तंत्र जात्र वैमाणिया, नवरं उबचाओ सव्वेसिं जहा बकंतीए ॥ सेवं भंते ! भंतेति ॥४१॥२॥ X रासी जुम्म दावरजुम्म रइयाणं भंते ? कओ उववज्जंति ? एवं चेव उदेसओ, नवरं परिमाणं दोवा छवा दसवा संखेज्जावा असंखेजावा उववजंति, संवेहो ॥ तेणं भंते ! (योज नारकी कहां से उत्पन्न होते हैं? अहो गौतम! जैसे उपर्युक्त उद्देशा कहा वैसे ही कहना. परंतु परिमाण तीन, सात, अग्यारह, पन्नरह, संख्यात व असंख्यात उत्पन्न होते हैं. अनंतर निरंतर वैने ही कहना. अहो भगवन् ! वे जीवों जिस समय में त्र्यांज है उस समय में क्या कृतयुग्म हैं जिस समय में कृतयुग्म' हैं. उस समयमें क्या व्याज हैं? अहा गौतम! यह अर्थ योग्य नहीं. तो जिस समय में श्योज हैं उस समय द्वापरयुग्म है. या जिस समय में द्वापरयुग्म उस समय में त्र्योज हैं? अहो गौतम! यह अर्थ भी योग्य नहीं. ऐसे ही कल्याज की साथ भी कहना. शेष वैमानिक पर्यन्त वैसे ही कहना. उपपात व्युत्क्रांति जैसे कहना. अहो भगवन्! आपके बचन { सत्य हैं ||४|| २ || अहो भगवन ! राशियुग्म द्वापरयुग्म नारकी कहां से उत्पन्न होते हैं ? अहो गौतम !
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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