Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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२०७५.
सिझंति जाव अंशंकरैति, अत्थेगइया णो तेणव भवग्गहणणं सिग्भंति जाव अतंकरोति जदि आय अजसं उवजीवंति किं सलेस्सा अलेस्सा ? गोयमा ! सलेस्ता णो अले. स्ता, जइ सलेस्सा किं सकिरिया अकिरिया ? गोयमा ! सकिरिया णो अकिरिया, जइ सकिरिया तेणव भवग्गणेणं मिझंति जाव अतंकति?गोयमा!णो इणट्रे समटे॥वाणमंतर जोइसिय वेभाणिया जहा णेरइया ॥ सेवं भंते ! भंतेत्तिाइगुलीसइम मयस्स पढमो उद्देसो॥४१॥२॥ x रासीजुम्म तेओगणेरइयाणं भंते ! कओ उववजंति? एवंचेव
उद्देसओ भाणियन्यो, णवरं परिमाणं तिण्णिवा सत्तवा एक्कारसवा पण्णरसवा, संखजा होवे नहीं यदि सक्रिय होवे तो क्या उसी भव में सीझे बुझे यावत् अंत करे ? अहो गौतम! कितनेक IFउसी भव में सीझे बुझे यावत् अंत करे और कितनेक उसी पत्र में सीझे बुझे यावत् अंत करे नहीं... यदि E असंयमसे उपजीविका करतो क्या मलेशीकरे कि अलेशीकरे? अहो गौतम!सलेशीकरे परंतु अलेशी नहीं करे..
यदि सलेशी करेतो क्या सक्रियकरे या अक्रियाकर अहो गौतमसक्रियकरे परंतु अक्रिय नहीं करे.यदि सक्रिय
करे होवे तो क्या उसी भवमें सीझे बुझे यावत् अंत करे? अहो गौतम!यह अर्थ योग्य नहीं हैं अर्थात् वैसा नहीं 1 .बापव्यतरं ज्योतिषी व वैमानिकका नारकी जैसे कहना.महो भगवन आपके वचन सत्य हैं यह इक्कतलीसा 10 शतक का पहिला उद्देशा पंपूर्ण हुझे ॥ ४५ ॥ १॥ * ॥ अहो भगवन् ! राशि युग्म !
पंचांग विवाह पग्णत्ति ( भगवती) मूत्र tigh
488+ एकतालीसा शतक का दूसरा उदेशा88