Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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4.33
... अजसं उत्रजीवति ॥ जदि आय अजसं उवर्जीवति किं सलेस्सा अलेस्सा ? गोयमा!
सलेस्सा णो अलस्सा ॥ जदि सलेस्सा किं सकिरिया अकिरिया ? गोयमा ! सकिरिया णो अकिरिया ॥ जदि सकिरिया तेणव भवग्गहणेणं सिझंति जाव अंतकरेंति ? णो इणट्टे समढे ॥ ५ ॥ रासी कडजुम्म असुरकुमाराणं भंते ! कओ उपवजति जहेव णेरइया तहेव गिरवसेसं, एवं जाव पंचिंदिय तिरिक्खजोणिया, णवर वणस्सइ. काइया जाव असंखेजा वा अणंता वा उववजंति, सेसं तंचेव मणुस्सवि, एवंचव
जाव णो आयजसेणं उववज्जति, आय अजसेणं उववति ॥ जइ आय अजसणं भावार्थ अहो गौतम ! सलेशी होवे नहीं परंतु अलेशी होवे. यदि सलेशी. होवे तो क्रिया माहित होते कि
अक्रिया होवे ? अहो गौतम ! सक्रिय होवे परंतु अक्रिय होवे नहीं. यदि सक्रिय हो तो क्या उप्ती LEभव में सीझे याक्त अंत करे ? ओ गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं है अर्थातू ऐसा नहीं होता है ॥ ५ ॥
अहो भगवन् ! राशि कृतयुग्म वाले असुर कुमार कहां से उत्पन्न होते हैं ? अहो गौतम ! जैसे नारकी
का कहा वैसे ही विशेषता रहित तिर्यंच पंचेन्द्रिय पर्यंत कहना. परंतु वनस्पति काया असंख्यात व अनंत 17 उत्पन्न होते हैं ऐसा कहना, शेष सब वैसे ही कहना. मनुष्य का मी वैसे ही यावत् संयम से नहीं उतानः ।।
पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र 40
एकतालीसवा शतक का पहिला उद्देशा 48