Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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बेवाह पण्णनि (भगवती ) सूत्र 4
अटवा बारसवा सोलसवा संखेजवा असंखेजवा उववति । तेणं भंतें! जीवा कि संतरं उबवजंति णिरंतरं उववजंति ? गोयमा ! संतरंपि उववजंति निरंतरंपि उब. वजति; संतरं उववजमाणा जहण्णेणं एक समयं उक्कोसेणं असंखेजा समया, अंतरं कड उववमंति, जिरंतरं उबजमाणा जहण्णेणं दो समया उकासेण असंखेजा समया अणुसमयं अविरहियं णिरंतरं उववज्जति ॥ २॥ तेणं भंते ! जीवा जं समयं कडजुम्मा तं ममयं तेओगा, जं समयं तेओगा तं समयं कडजुम्मा गोयमा! णो इण?
सम? ॥ जं समयं कडजुम्मा तं समयं दावरजुम्मा, जं समयं दावरजुम्मा तं समयं बारह,सोलह मंख्यात व असंख्यात उत्पन्न होते हैं.अहो भगवन् वे अंतर सहित उत्पन्न होते है या अंतर रहित उत्पन्न होते हैं ? अहो गौतम ! अंतर सहित भी व निरंनर भी दोनों तरह अंतर महित उत्पन्न होते हैं. वे जघन्य एक समय उत्कृष्ट अनंख्यात समय के अंतर से उत्पन्न होते हैं. और निरंतर उत्पन्न होते वे जघन्य दो समय उत्कृष्ट असंख्यात समय तक प्रयक समय विरह रहित उत्पन्न होते हैं ॥२॥ अहो भगवन् !
जीवा जिप समय में कनयुग्म हैं उस समय में ध्यांज व जिम समय में ज्योज में उस समय में क्या कृतयुग्म 4 हैं? अहो मौतम! यह अर्थ योग्य नहीं. जिस समय में कृतयुग्म उस समय में द्वापरयुग्म या जिस समय में द्वापरयुग्म उससमय में कृतयुग्ध क्या है बहो मौतम यह अर्थ भो योग्य नहीं है.अथवा जिस समय में 11
भावार्थ
एकतालीसवा शतक का पहीला उद्देशा4.88+