Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवति ) सूत्र +8+
सयं सम्मत्तं ॥ ४० ॥ १६ ॥ एवं छहिलेसाहि छ सया कयन्वा, जहा कण्हलेस्स सयं, णवर-संचिट्ठणा द्वितीय जहेव ओहियसए तहेव भाणियव्वा, णवरं सुक्कलेस्साए उक्कोसणं एकत्तीसं सागरो माइं अंनो मुहुत्त मन्भहियाई, ठिती, एवं चेव गवरंअंतो महत्तो पत्थि, जहण्णगं तहेव सव्वत्थं सम्मत्तं णाणाणि णत्थि, विरयी विरयाविरयी, अणुत्तर विमाणोववत्ति एयाणिणत्थि, सव्वपाणा ? जो इण? ममढे सेवं भंते ! भंतेत्ति एवं एयाणि सत्त अभव सिद्धियपयाणि महाजुम्म सयाणि भवंति।। एवं एथाणि एकवीसं सण्णि महाजुम्म सयाणि सव्वाणि एक्कासीति महाजुम्म सया सम्मत्ता ॥ चत्तालीमइमं मयं सम्मत्तं ॥ ४० ॥
x ऐसे ही छ लेश्या के साथ छ शतक कहना. परंतु मंचिठणा, व स्थिति औधिक जैमे कहना. विशेष में शुक्ल लेश्या में उत्कृष्ट इकतीस सागरोपम अंतर्मुहूर्त अधिक स्थिति कही. यहां अंतर्मुहून नहीं हैं,जघन्य वैसे ही...
सर्वत्र सम्यक्त्व व ज्ञान नहीं हैं. विराति, विरताविराते व अनुत्तर विमान में उत्पत्ति नहीं है. सब प्राणादि • उत्पन्न हुवे? यह अर्थ योग्य नहीं हैं. अहो भगरन् ! आपके वचन सत्य हैं. यों अभवसिद्धिक के सात
महायुग्म शतक हुवे. या संज्ञी पंचेन्द्रिय के इक्कीस और सब मीलकर इक्रासी महायुग्म शतक संपूर्ण हुए ॐ॥१॥ यह चालीसबा शतक संपूर्ण हुवा ॥ ४०॥
-48चालीसवा शतक का १६-८१.७६ 47
भावार्थ
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