Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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भावार्थ
488* पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
जहा कण्ह लेस्सए, कण्हलेस्सा वा जाव सुक्कलेस्सावा, णो सम्मद्दिट्टी, मिच्छदिट्ठी, णो सम्मामिच्छाद्दट्ठी, णो णाणी, अण्णाणी, एवं जहा कण्णलेस्ससए, वरं णो विरया अरिया णो विरयाविरिया || संचिणाट्टिईय जहा ओहिय उद्देमए, समुग्धाया आदिलगा पंच, उबट्टा तहब अणुत्तरविमाणवजं ॥ सव्वपाणा ? णो इट्ठे समट्ठे || सेसं जहा कण्हलेरससए जाव अनंतखुत्तो, एवं सोलससुवि कडजुम्मे ॥ सेवं भंते ! भंते ति ॥ १ ॥ पढम समय अभवसिद्धिय कडजुम्म २ सण पंचिदियाणं भंते ! कओ उववज्जंति जहा सण्णीणं पढम समयं उद्देसए तहेव, णवरं
{ नहीं हैं. परंतु एक मिध्यादृष्टि हैं. ज्ञानी नहीं है परंतु अज्ञानी हैं. यों जैसे कृष्णलेश्या के शतक में कहा वैसेही [ कहना परंतु विरति व विरताविरति नहीं हैं किन्तु अविरति है ऐसा कहना. संचिठणा व स्थिति औधिक उद्देशा { जैसे कहना. समृद्धात पहिली पांचपाती है. उद्वर्तन अनुत्तर विमान बर्जकर वैनेडी कहना सत्राणी आदि उत्पन्न {हुवे यह अर्थ योग्य नहीं हैं. शेष मत्र कृष्णलश्या शतकों कहा वैसेटी कहना यावत् अनंतवक्त उत्पन्नहुन यो { सोलह महायुग्म में कहना. अहो भगवन्! आपके वचन सत्य हैं ॥१॥ प्रथम समय अभवसिद्धिक कृतयुग्म २ संज्ञी पंचेन्द्रिय कहाँ से उत्पन्न होते हैं : यों जैसे संज्ञीका पहिला उद्देशा कहा वैसेडी कहना. परंतु सम्यक्त्व,
चालीसा शतक का पहवा उद्दशा
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