Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ
* पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्त (भगवती) सूत्र
सयं जहा ओहियलयं णवरं संविटुणा ठिईय जहा कण्हलस्ससए, सेसं तहेव जाव 'अनंत खत्तो ॥ सेवं भंते ! भंतेत्ति | सत्तमं सयं सम्मत्तं ॥ ४० ॥ ७ ॥ भवसिद्धिय कडजम्म २ सणि पंचिदियाणं भंते! कओ उवबजंति ? जहा पढमं सणि सतं तहा तव्वं भवसिद्धियाभिलावेणं णवरं सव्वपाणा ? णो णट्ठे समट्ठे । सेसं तंचेव ॥ सेवं भंते ! भंतेत्ति | अट्ठम सय सम्मत्तं ॥ ४० ॥ ८ ॥ कण्हलेस्स भवसिद्धिय कडजुम्म २ सणि पंचिदियाणं भंते ! कओ उववजंति, एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओहिय कण्हलेस्स सयं ॥ सेवं भंते ! भंतेति ॥ णत्रमं
॥ अहो
औधिक जैसे कहना परंतु संचिठणा व स्थिति कृष्ण लेश्या जैसे कहना. शेष पूर्वोक्त जैसे याक्व अनंतवक्त उत्पन्न हुवा अदां भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं यो सातवा शतक हुवा ||४०||७|| + भगवन् ! भवसिद्धिक कृतयुग्नसंज्ञी पंचेन्द्रिय कहां से उत्पन्न होते हैं ? यों जैसे पहिला संज्ञी शतक कहा अभिलापक कहना परंतु सब प्राण यात्रत् नहीं उत्पन्न होते हैं शेष वैसे ही. अहो भगवन् आप के वचन सत्य हैं. यों आठवा शतक संपूर्ण हुवा ॥ ४० ॥ ८ ॥ भगवन् ! कृष्ण लेश्यावाले भवसिद्धिक संज्ञी पंचेन्द्रिय कहां से उत्पन्न होते हैं ? यों इस जैसे औधिक कृष्ण लेश्या का शतक कहा वैसे ही कहना. अहो भगवन् ! आपके वचन
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لمہ
॥ अहो अभिलाप से सत्य हैं. यह
43903 चालीसवा शतक का ८-९ उद्देशा
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