Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 3082
________________ २०१४ एक समयं उक्कोसेणं दो सागरोवमाइं, पलिओवभस्स असंखेजइ भाग मन्महियाई॥ एवं ठिईएवि, णवरं णो सण्णोवउत्ता, एवं तिसुवि गमएसु सेवं भंते ! भंतेत्ति ॥ पंचमं सय ॥ ४० ॥ ५॥ * ॥ जहा तेउलेस्सा सतं तहा पम्हलेस्स सयंवि णवरं संचिटणा जहण्णेणं एवं समयं उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं अंतोमुहुत मन्भहियाई, एवं ठिईएवि णवरं अंतोमुहुत्तं ण भण्णंति, सेसं तहेव ॥ एवं एएसु पंचसु सएसु २ जहा कण्हलेस्ससए गमओ तहा तन्वो जाव अणंतखुत्तो ॥ सेवं भंते ! भंतेत्ति ॥ छटुं सयं सम्मत्तं ॥ ४० ॥ ६ ॥ - ॥ सुक्कलेस्स जघन्य एक समय उत्कृष्ट दो सागरोपम और पल्योपप के असंख्यातवा भाग अधिक. ऐसे ही स्थिति का कहना परंतु नो संज्ञोपयुक्त कहना. यों तीनों गमा में कहना. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं. यह पांचवा शतक संपूर्ण हुवा. ॥ ४० ॥५॥ ॥जैसे तेंजो लेश्या का शतक कहा वैसे ही पन लेश्या का भी शतक कहना. परंतु संचिठणा जघन्य एक समय उत्कृष्ट दश सागरोपम अंतर्मुहूर्त अधिक. ऐसे ही स्थिति का कहना परंतु अतंर्मुहून अधिक कहना नहीं ? शेष वैसे ही. ऐसे ही इन पांचों शतक में जैसे कृष्ण लेश्या का शतक कहा वैसे ही कहना यावत् अनंतवक्त उत्पन्न हुवा. अहो भगवन्! आपक कवचन सत्य है. यह छठा शतक संपूर्ण हुवा. ॥ ४० ॥ ६॥ + शुक्ल लेश्या का 42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वाला प्रसादजी* भावार्थ amarMhammmmmmm

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