Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 3084
________________ सूत्र भावार्थ 4. अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषि सयं ॥ ४० ॥ ९ ॥ एवं णीललेस्स भवसिद्धिएव सयं ॥ सेवं भंते २ ति ॥ दसमं सयं ॥ ४० ॥ १० ॥ ॥ एवं जहा ओहियाणि सण पंचिदियाणि सत सयाणि भणियाणि, एवं भवसिद्धिएहिंवि सत्तसयाणि, कायव्याणि नवरं मत्तसुवि सतु सव्वपाणा जाव णो इण्डे समट्ठे, संसं तंत्र ॥ सवं भंते । भंतति ॥ भवसिद्धिय सया सम्मता ॥ चउदसमं सयं सम्मत्तं ॥ ४० 11 १४ अभवसिद्धिय कडजुम्म २ सणि पंचिदियाणं भंते! कआ उववज्जति ? उवनाओ तत्र अणुत्तररात्रमाण वज्जो, परिमाणं आहारी उच्चतं बधो वेदो वेदणं उदआ उदीरणाय 11 नववा शतक संपूर्ण हुवा ॥ ९ ॥ x ॥ यों नील लेश्यावाले भवसिद्धिक की साथ भी { कहना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य है. यह दशवा शतक संपूर्ण हुवा ॥ १० ॥ ४ ॥ यों जैसे औधिक संज्ञी पंचेन्द्रिय के सात शतक कहे वैसे ही भवसिद्धिक के भी सात शतक कहना. परंतु सातों शतक में सब प्राण यावत् यह अर्थ समर्थ नहीं है. यह चौदहवा शतक संपूर्ण हुआ || १४ | अहो भगवन् ! अभवसिद्धिक कृतयुग्म २ कृष्ण लेश्यावाले मंझी पंचेन्द्रिय कहां से उत्पन्न होते हैं ? ( उपपात अनत्तर विमान वर्जकर कहना. परिमाण, आहार, उच्चल, बंध, वेद, वेदना, उदय व उदीरणा कृष्णलेश्या के शतक जैसे कहना, कृष्ण लेश्या अथवा यात्रत शुक्ललेश्या छदी है. समदृष्टि व समोमध्यादृष्टि + * प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी ३०६६

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