Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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20+
40+पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती ) सत्र
सलेस्सा; अवेदगा जहा सम्मविट्ठी ॥ सकसाइ जाव लाभकसाइ जहा सेलेस्सा, अकसाइ जहा सम्माट्ठिी, सजोगी जाव कायजोगी जहा सलेस्सा, अजोगी जहा सम्मदिट्टी ॥ सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता जहा सलेस्ता, एवं णेरइयानि भाणियन्वा, णवरं गायव्वं जं अस्थि । एवं अपुर कुमारवि जाव थाणिय कुमारा | पुढवी काइया सबढाणेसुवि मझिल्लेसु दोसुवि समोसरणेसु भवसिडियावि अभवसिद्धियावि । एवं जाव वणस्सइकाइया । वेइंदिया तेइंदिया चउरिंदिया एवंचेव, णवरं सम्मत्ते ओहियणाणे अभिणिवोहियणाणे सुयणाणे एएसु चेव मज्झिमेसु समोसरणेसु भवसिद्धिया
जो अभवसिद्धिया, सेसं तंचेव ॥ पंचिंदिय तिरिक्खजोणिया जहा णेरइया, णवरं जं नारकी का ऐसे ही कहना. परंतु जिन को जितने होवे उन को उतने कहना. ऐसे ही अशुरकुमार यावत् स्तनित कुमार का जानना. वनस्पतिकाया के सब स्थान बीच के दो समोसरण में भव सिद्धिक व अभव सिद्धिक एसे दोनों कहना. ऐसे ही वनस्पतिकाया पर्यन्त कहना. बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय व चतुर-3 न्द्रिय में वैसे ही कहना परंतु सम्यक्त्व समुच्चय ज्ञान, आभिनिबोधिक ज्ञान व श्रुत ज्ञान इन के बीच के समोसरण में भवसिद्धिक कहना परंतु अभवसिद्धिक कहना नहीं. शेष वैसे ही. तिर्यंच पंचेन्द्रिय का नारकी ।
488-तीसवा शतक का पहिला उद्देशा 4.88
भावार्थ